धूल-धूसरित मटमैली,
कृशकाय असहाय पगडंडी |
कृशकाय असहाय पगडंडी |
न परखती अपनों को,
न ग़ैरों से मुरझाती|
न ग़ैरों से मुरझाती|
दर-ब-दर सहती प्रकृति का प्रकोप,
भीनी-भीनी महक से मन महकाती |
भीनी-भीनी महक से मन महकाती |
क़दमों को सुकूँ,
जताती अपनेपन का एहसास |
जताती अपनेपन का एहसास |
तल्ख़ धूप में,
लुप्त हुई पगडंडी,
रिश्ते राह भटक गये |
दिखा धरा को रूखापन,
पगडंडी दिलों में खिंच रही |
थामे अँगुली चलते थे कभी साथ,
वो राह बदल रही |
निर्ममता की उपजी घास,
रिश्तों की चाल बदल रही |
अपनों को राह दिखाती,
वो डगर बदल रही |
धरा से सिमट अब,
दिलों में खिंच गयी,
कृशकाय पगडंडी,
जिस पर दौड़ते रिश्ते,
रिश्तों की चाल बदल रही |
दिलों में खिंच गयी,
कृशकाय पगडंडी,
जिस पर दौड़ते रिश्ते,
रिश्तों की चाल बदल रही |
- अनीता सैनी
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय
हटाएंसादर
जी, अतिउत्कृष्ट भावाभिव्यक्ति सुखद औ सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंकविता के बाह्य स्वरुप को सजाएँ।
जिसमें अल्प विराम चिन्हित हो।
चार चरणों के छंद में द्वितीय औ चतुर्थ चरण के अंत मे अल्प विराम प्रयुक्त होते हैं।
बरहाल सादर धन्यवाद उत्कृष्ट चिंतन चित्रण निमित्त ।
सुप्रभातम् जय श्री कृष्ण राधे राधे जी।
सहृदय आभार मार्गदर्शन हेतु
हटाएंआभार
सादर
प्रिय अनीता -- बदलते समय में स्नेह की विलुप्त हो रही पगडंडियों पर सार्थक चिंतन से भरी यह रचना अत्यंत सराहनीय और विचारणीय है | सचमुच सामाजिक और पारिवारिक जीवन की वो आपसी सौहार्द भरी पगडंडी विलुप्त प्राय हो गई हैं जिनपर चलते समय अपनेपन का बोध कराना नहीं पड़ता था | सब कुछ स्नेहासिक्त और मधुरता से भरा था | सार्थक रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें |
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय दी
हटाएंसादर
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (15-05-2019) को "आसन है अनमोल" (चर्चा अंक- 3335) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
तहे दिल से आभार आप का
हटाएंसादर
रिश्ते भी मिट रहे हैं जैसे ये पग डंडियाँ ....
जवाब देंहटाएंपत्थर के रास्ते और रिश्ते हो रहे हैं ... सार्थक रचना ...
सहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
वाह!
जवाब देंहटाएंतहे दिल आभार आदरणीय
हटाएंसादर
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 14/05/2019 की बुलेटिन, " भई, ईमेल चेक लियो - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
धरा से सिमट अब दिलों में खिंच गई
जवाब देंहटाएंकृशकाय पगडंडी पर दौड़ते रिश्ते
रिश्तों की चाल बदल रही...
चलायमान इस दुनियाँ में नाजुक रिश्ते व संबंध भी बेअसर होने लगे हैं, ऐसा प्रतीत होता है। हो सकता है कि यह सापेक्षिक आभास हो, फिर भी मन मानस को यह अक्सर उद्वेलित कर ही जाता है।
सुन्दर शीर्षक चुना है आपने । बहुत-बहुत शुभकामनाएँ अनीता जी।
आभार आदरणीय
हटाएंसादर
बेहतरीन रचना सखी 👌
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सखी
हटाएंसादर
तहे दिल से आभार आप का
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुन्दर सृजन प्रिय अनीता ।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय सखी
हटाएंसादर
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरूवार 16 मई 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय पाँच लिंकों में मुझे स्थान देने के लिए |
हटाएंआभार
बहुत सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार आदरणीय आप का
हटाएंसादर
बहुत ही सुंदर.... सखी
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय सखी कामिनी जी
हटाएंसादर
वाह!!सखी ,बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार प्रिय सखी शुभा जी
हटाएंसादर
बहुत सुंदर सृजन अनु..भाव की गहनता ही रचना की सुंदरता है।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय सखी श्वेता जी
हटाएंसादर
दिखा धरा को रूखा पन
जवाब देंहटाएंपगडंडी दिलों में खिंच रही
थामें अँगुली चलते थे कभी साथ
वो राह बदल रही
सही कहा दिलों में खिंच रही पगडण्डी...
वाह!!!
लाजवाब सृजन
तहे दिल से आभार प्रिय सखी
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