कानों में चुभने लगी,
गाँधी के देश में गाँधीगीरी की,
परिपाटी पनपने लगी,
ख़ामोशी से ताकती निगाहें,
गौण होती इंसानियत,
बड़प्पन का मुखौटा,
मुखौटे में दम तोड़ता पिंजर |
ख़्वाहिशों से जूझता मन,
मन में सूक्ष्म बीज ख़्वाहिशों के,
ख़्वाहिशों से पनपती लापरवाही,
लापरवाही का न्यौता घटना और हादसों को,
हादसों का शिकार बनते,
अंजान और बेख़बर लोग,
जिन्हें अगले पल का,
आभास मात्र भी नहीं |
मन में होने वाली ग्लानि,
धुल जाती वक़्त के साथ,
तन की कल्मषता गंगा स्नान से,
कितना आसान,
तन और मन को साफ़ रखना |
वक़्त के साथ यह परिपाटी,
लगा रही दौड़,
क्यों बदलें हम ?
सामने वाला क्यों नहीं?
शालीनता में छिपा अहंकार,
ख़ामोशी में छिपा द्वेष,
द्वेष मन के साथ,
निगल जाता तन को,
अपने हों या पराये,
एक ही नज़र से ताकता |
- अनीता सैनी
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (27-05-2019) को "खुजली कान के पीछे की" (चर्चा अंक- 3348) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए
हटाएंसादर
सही कहा अनिता दी कि हमने हमारे हिसाब से शालीनता की परिभाषा को बदल दिया हैं। सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंप्रिय ज्योति बहन बहुत बहुत शुक्रिया आप का
हटाएंसस्नेह
सादर
बहुत ही बेहतरीन रचना सखी 👌
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार प्रिय सखी
हटाएंसादर
मेरे हिसाब से अहंकार में छिपी शालीनता नही, शालीनता में छिपा अहंकार इस कविता की कथावस्तु है। बढ़िया कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय
हटाएंसादर
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 26/05/2019 की बुलेटिन, " लिपस्टिक के दाग - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय ब्लॉग बुलेटिन में स्थान देने के लिए
हटाएंसादर
मानवीय संवेदना को झकझोरती चिंतनपरक अभिव्यक्ति जिसमें वर्तमान सामाजिक अवस्था पर करारा प्रहार किया गया है।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
अपने हिसाब से शालीनता का आवरण ओढ़े लोगों पर व्यंगात्मक रचना प्रिय अनीता |छद्म आचरण से समाज में सौहार्द और आपसी भाईचारे को ठेस पहुंची है | हार्दिक शुभकामनायें |
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया प्रिय रेणु दी जी
हटाएंसादर
वाह!प्रिय सखी ,बहुत सुंदर लिखती हैं आप !
जवाब देंहटाएंवैसे यहाँँ सभी आवरण में ढके हैं ।
सस्नेह आभार प्रिय सखी शुभा जी
हटाएंसादर
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंजी बहुत बहुत शुक्रिया
हटाएंसादर
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुंदर .... सखी
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय कामिनी बहन
हटाएंसादर स्नेह
... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार भास्कर भाई
हटाएंप्रणाम
सादर