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गुरुवार, मई 17

दोहे... प्रथम प्रयास

दोहे... प्रथम प्रयास 

हारी दिल अपना सखी, कान्हा  तो चितचोर ।
सुनो बात प्रिय राधिका, मुझको अपना जान ।।

जब से देखा नैन भर, अर्पित तबसे प्राण ।
जपकर उसके नाम को, होती है नव भोर ।।

मीरा  दीवानी  कहे, छलिया अब नहि आय ।
लाज शर्म हारी सखी, अरि जग दिया बनाय ।।

दीवानी     मीरा    हुई,  जबसे देखा श्याम ।
घड़ी घड़ी जपने लगी,  राधे राधे नाम ।।
कान्हा कान्हा सब कहें, कान्हा तो चित चोर
दिल मे उसके राधिका,जगह जगह यह शोर   ।।

हुनर  तुम्हारा सादगी,नैना तीक्ष्ण कटार ।
देखा जबसे आपको,हुआ तभी से प्यार ।।

शब्द   प्यार  में  अल्प  है, गहरे  लेना भाव।
प्रेम मेरा स्वीकार हो, दिल पर करो न घाव 

नजरों   से    दूर   हो, भेजा    है  पैगाम
साजन  राह  निहारती, गोरी सुबह शाम

राह   निहारें  गोरङी,लेकर साजन नाम
कब  आओगें  पीवजी,हुई सुबह से शाम

बैरी   मन  लागे  नहीं,पिया  बसे  परदेश
जिवङो तरसे दिन रेन, नयनन जोए बाट

दर्पण देख गोरङी,फिर फिर कर सिंगार
रूठ  न  जावे पीवजी,सोचें यह हर  बार

पल पल राह निहारती,घङी घङी बैचैन।
साजन तेरी याद में,बरसे नित ही नैन।

हुनर  तुम्हारा सादगी, नैना तीक्ष्ण कटार ।
देखा जबसे आपको, हुआ तभी से प्यार ।।

दिल चाहे इक आपको, मन क्यों उड़ता जाय ।
देह   हुई   है   बाबरी, जगत दिया बिसराय ।।

अन धन  सब अर्जित रहे ,मिले  न एक पल चैन ।
त्राहि त्राहि  पुकार रहे  ,  मन  मानस  बैचैन ।

सजन बिन सिंगार झूठे, हिवड़े  री पूकार
  दिन महीने बरष  छूटे ,नैन करे तक़रार।

राम  तुम्हारा सच कहे  ,कण कण में है राम ।
सच की रहा चल  रहे ,सफल करे सब काम।।

मन  मेरे  कान्हा  बसे , तन में  बसे  राम ।
चैन ना हीं  बिन कान्हा, मिले राम आराम ।।

राम नाम स्मरण करे  , सफल  बने सब काम  ।
दू :ख दर्द हरण करे  ,  जन  मानस के राम ।।

राम  नाम  मृदु  रस भरा,राम हृदय सुख सार ।
वर्णन कब किससे हुआ,यह राम रमा संसार ।।

- अनीता सैनी 

शुक्रवार, मई 11

मज़दूर




मेहनत कहे मज़दूर से साँचा सुख बटोरा, 
तन का सुख न देख बंदे मन मेहनत संग खिल जाये 

 क्यों रोये ?क्यों बौराये, ख़ुशियाँ उपजे आँगन तेरे, 
देख ! दौड़ा चक्र समय का, मेहनत बन फूल जीवन तेरा महकाये,  

कर्म ने दिया थपेड़ा ,मेहनत  तेरी  हथौड़ा, 
थाम हाथ मेहनत का, जीवन ख़ुशबू बन खिल जाये, 

कर्म  दौड़ेगा   राह में तेरे  , संघर्ष  से  हाथ मिला,  
सोना बन चमकेगा सब मीत बन सीने से तुझे लगाये |

- अनीता सैनी 

मंगलवार, मई 8

वेदना प्रकृति की

                                     

                                     भाग -2
सहसा ! फिसल गयी  वह 
या चलते-चलते बदल गयी  
चक्षु  क्यों  चकरा गये  ?
क़दम क्यों  लड़खड़ा गये? 
कुदरत फूट पड़ी क्यों ?
अंदर ही अंदर टूट पड़ी क्यों? 
फैला पायी  बस इतना 
मनुज की निर्बोध आँखें |
सहम गयी  क़ुदरत भी आज 
तरु-तरूवर भी सूखे, 
चित्रभानु का रुख़ भी तेज़
वारिद क्यों रहा न मेरा 
मनुज को  अब होश कहाँ ? 
मिजाज़ मेरा छूट रहा घंमड मेरा टूट रहा 
थी कभी प्रवृत्ति  हूँ आज विकृति के कगार पर 
अक़्ल का अज़ण खुदगर्ज़ मनुज 
जर्जर आँचल सूख रहा क्यों ?
मंडरा रहे बादल काल के 
विचलित मन या  भ्रम मेरा 
डोर समय की सिमट रही या धीरे-धीरे टूट रही 
ग्रास काल का बन रही या समय ख़त्म हुआ अब मेरा
ताना-बाना यादों का बुन रही क़ुदरत आज 
 चंद्रभानु के तेवर तेज़, शशि की ठण्डी छाँव है आज 
शशि संग अनुराग अमर वक़्त निकृष्ट साथ अजर है |

- अनीता सैनी 




    

बुधवार, मई 2

वेदना प्रकृति की



भाग -1
समेटे आग़ोश में दोनों जहां 
सिसक रही क्यों आज 
सृष्टि कहूँ  या प्रकृति 
नारी कहूँ  या नारायणी 
स्वरुप इनका एक
उलझन  में वो बैठी आज 
निर्णय हो जैसे  गंभीर  
सीरत ठीक नहीं 
सूरत में है खोट 
क्यों मानव बारम्बार कर रहा तिरस्कार  मेरा 
उलझी-सी वो बैठी आज निर्णय हो जैसे गंम्भीर 
पिटारा भावनावों का समेटे 
निकली किस सफ़र पर आज 
साँसों  में है गर्मी 
रुख़ भी प्रचंड आज 
अस्तित्व अपना बचाने 
दौड़ रही क्यों आज ?
दौड़ घबराहट की या बौखला  गयी वो आज 
सदियों से सहती आयी  इसे हुआ क्या आज ?
देखो ! बौरा  गई पगली 
हर मानव का यही भाव 
 अस्तित्त्व अपना बचाने दौड़ रही क्यों आज 

- अनीता सैनी