दोहे
बैरी सावन माह बना , पिया बसे प्रदेश
मैं विरहणी रोती फिरूँ, नैन निर नहीं शेष ।
शब्द प्यार में अल्प है ,गहरे लेना भाव।
प्रेम मेरा स्वीकार हो,दिल पर करो न घाव।
नजरों से दूर हो,भेजा है पैगाम।
साजन राह निहारती,गोरी सुबह शाम।
राह निहारें गोरड़ी ,लेकर साजन नाम।
कब आओगे पीवजी,हुई सुबह से शाम।
बैरी मन लागे नहीं,पिया बसे परदेश।
जिवङो तरसे दिन रेन, नयनन जोए बाट।
दर्पण देख गोरड़ी ,फिर फिर कर सिंगार
रूठ न जावें पीवजी,सोचे यह हर बार।
पल-पल राह निहारती,घड़ी - घड़ी बैचैन।
साजन तेरी याद में,बरसे नित ही नैन।
-अनीता सैनी
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