समय के साथ बह गयी ज़िंदगी,
ख़ामोश निगाहें ताकती रह गयीं ,
किये न उनके क़दमों में सज्दे,
हर बार इंतज़ार में रह गयी |
सज्दे न करेगे उन की यादों के,
अल्फ़ाज़ से यही दुआ करते मिले,
टूटे दिल की दरारों में झाँकता,
उनकी यादों का कारवाँ मिला |
गुनाहों की सज़ा हर बार मिले ,
हर गुनाह की सजा सौ बार मिले,
बिछाये राहों में फूल,
काँटों की सौग़ात मिले |
इस तल्ख़ ज़माने की ठोकर मिली,
हर ठोकर पर मायूसी खिली,
सजाते रहे काँटों का ताज,
इल्म ये रहा,
मुस्कुराते रहे लव,
दिल तड़पते मिले |
# अनीता सैनी
गुनाहों की सजा हर बार मिले
जवाब देंहटाएंहर गुनाह की सजा सौ बार मिले
बिछाये राहों में फूल
काँटों की सौग़ात मिले ....,
हृदयस्पर्शी....,गहरे भाव लिए अनुपम सृजन अनीता जी ।
सस्नेह आभार प्रिय सखी
हटाएंसादर
वाह बहुत सुन्दर संवेदना से भरपूर हृदय स्पर्शी सृजन।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम।
सस्नेह आभार आदरणीया दी जी
हटाएंसादर
बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार आप का आदरणीय
हटाएंसादर
दिल को छूती बहुत सुंदर रचना,अनिता दी।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय ज्योति बहन
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