ख़ामोशी पर सवाल क्यों?
तड़प रहा दिल,
उनकी यादों पर बवाल क्यों?
वफ़ा-ए-ज़िंदगी का क़हर,
उल्फ़त बटोरने में मगरुर,
टूटी खिड़की में झाँक रही,
ज़िंदगी हर पहर ।
उल्फ़त बटोरने में मगरुर,
टूटी खिड़की में झाँक रही,
ज़िंदगी हर पहर ।
बिखर गये कुछ ख़्वाब
कुछ वक़्त से पहले निखर गये
कुछ समा गयें दिल में ,
कुछ राह में बिखर गये।
हर क़दम पर ग़म पीती रही,
अदा करती रही महर,
ज़िंदा रहने के लिये,
पीना पड़ता ज़हर,
मौत एक घूँट में हो जाती मगरूर।
अदा करती रही महर,
ज़िंदा रहने के लिये,
पीना पड़ता ज़हर,
मौत एक घूँट में हो जाती मगरूर।
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