सायली छंद
सभ्यता
मायूस हुई
दहलीज़ पर बैठी
तोड़ रही
दम ।
परिवार
बिखर रहें
फैल गया अकेलापन
बेचैन मनुष्य
सिमटा ।
बेख़बर
बिलखता इंसान
इंसानियत खो रहा
बन बैठा
हैवान ।
ख़्वाब
दिल के
आँखों में सँजोये
काजल से
छुपाये ।
शब्दों
में संजोई
बिखर रही ज़िंदगी
फिर एक
हुई।
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