शुक्रवार, सितंबर 14

सायली छंद




सभ्यता
मायूस हुई
दहलीज़  पर बैठी
तोड़  रही
 दम ।


परिवार
बिखर  रहें
फैल  गया  अकेलापन
बेचैन  मनुष्य
सिमटा ।


बेख़बर
बिलखता  इंसान
इंसानियत  खो  रहा
बन  बैठा
हैवान  ।


ख़्वाब
दिल  के
आँखों  में  सँजोये
काजल  से
छुपाये ।


शब्दों
में   संजोई
बिखर  रही  ज़िंदगी
फिर  एक
हुई।

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