सीने में सिसक रही,
शिद्दत उसे पाने की,
क़दम लड़खड़ा रहे,
चाहत रही गले लगाने की,
हौसले कब डगमगाये ?
रफ़्तार रही ,
आसमा को छूने की।
न मंज़िल के निशां होते,
न क़दमों में मक़ाम होता,
गर राहों में काँटे न होते,
न मिलती तपती धूप,
न क़दमों को गति मिलती,
न मंजिल की तलब होती।
शिद्दत उसे पाने की,
क़दम लड़खड़ा रहे,
चाहत रही गले लगाने की,
हौसले कब डगमगाये ?
रफ़्तार रही ,
आसमा को छूने की।
न मंज़िल के निशां होते,
न क़दमों में मक़ाम होता,
गर राहों में काँटे न होते,
न मिलती तपती धूप,
न क़दमों को गति मिलती,
न मंजिल की तलब होती।
गर मिल जाती सुकूँ की छाँव,
बहता शीतल जल,
मिल जाता सफ़र में ठाव ,
न होती यह महफ़िल,
न थिरकते ये पाँव।
#अनीता सैनी
बहता शीतल जल,
मिल जाता सफ़र में ठाव ,
न होती यह महफ़िल,
न थिरकते ये पाँव।
#अनीता सैनी
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