ज़िंदगी
दहलीज़ का सन्नाटा,
आँगन की ख़ामोशी,
मासूम निःशब्द निगाहें,
तलाश रही हर पल,
आहट ज़िंदगी में ।
असुवन में समा गयी,
साँसों संग बह गयी
कुछ क़दम चली,
राह में रह गयी ।
बेख़बर हुयी या,
बिखर गयी ,
कुछ कदम चली,
लड़खड़ा गयी,
वहीं दहलीज़ पर,
सिमट कर रह गयी ।
तुम्हारे इंतज़ार में,
ज़िंदगी चलना भूल गयी ।
# अनीता सैनी
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