अबकी बार गुज़रो,
उस राह से,
ज़रा ठहर जाना,
पीपल की छाँव में,
तुम पलट जाना,
उस मिट्टी के ढलान पर,
बैठी है उम्मीद,
साथ उस का निभा देना,
तपती रेत पर डगमगाएँगे क़दम,
तुम हाथ थाम लेना,
उसकी ज़मीरी ने किया है,
ख़्वाहिशों का क़त्ल,
तुम दीप अरमानों का जला देना,
ना-काम रही वो राह में,
ना-उम्मीद तो नहीं,
बटोही हो तुम राह के,
मंज़िल तक पहुँचा देना |
-अनीता सैनी
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा रविवार ( 02-05-2021) को
"कोरोना से खुद बचो, और बचाओ देश।" (चर्चा अंक- 4054) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
उम्मीद का दामन थाम आगे बढ़ते जाना ही ज़िन्दगी है ।
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंइंतज़ार की खूबसूरत पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंउम्मीद पर ही दुनिया टिकी है
जवाब देंहटाएंनव ऊर्जा से संचारित अति सुन्दर सृजन । मंजिल खुद चल कर आ जाएगी ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन....
जवाब देंहटाएंआज यूट्यूब पर इस छोटी सी मार्मिक कविता को पढा अच्छा लगा कवयित्री को बहुत बधाइयाँ अच्छे सृजन के लिए।
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