तसव्वुर ही कहें ख़्वाहिशों की शमशीर के शिकार बन बैठे
महफ़िल में लगे चार चाँद हम ग़मों के पास जा बैठे ।
ता-उम्र मुहब्बत तलाशते रहे,बेरुख़ी में ग़ालिब बन बैठे
मिली तसव्वुर की सौग़ात ज़िदगी अल्फ़ाज़ में डुबो बैठे।
तन्हाइयों के उल्फ़त से डरता रहा जहां, हम उनसे मुहब्बत कर बैठे
तसव्वुर में डूबे रहे हर वक़्त,लोग हमें जाने क्या से क्या समझ बैठे ।
अनीता सैनी
अनीता सैनी
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