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गुरुवार, सितंबर 27

भाल धरा का



प्रीत रंग फैला धरा पर 
हुई मुखरित नेह की छाँव 
रंग-बिरंगी घटाएँ उमड़ीं  
उमड़ रही गगन की प्रीत 
नेह रंग में बरसे बादल 
हुआ धरा का आँचल हरा 
हर रंग में  रंग चुकी 
नेह रंग लगा गहरा 
दुल्हन-सी सजी बैठी 
ओढ़े प्रीत रंग ओढ़नी 
मंद-मंद मुस्काती 
ख़ुशियाँ आँगन महकाती 
हर रंग फ़बता इस पर 
लगे रूप की देवी 
प्रीत रंग फैला धरा पर 
हुई मुखरित प्रीत की छाँव 
सजा आज रंगों का थाल 
जैसे हो धरा का भाल |

- अनीता सैनी 

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