प्रथम प्रयास...त्रुटि हेतु माफ़ी।
छिपे राज़ करे उजागर,
कर्म पथ उसे दिखाकर ।
हर मानव को राह दिखाय।।
ऐ ! सखी सूरज ,ना सखी समय।
देख मनुष्य खूब ललचाये,
साथ रहने को वह तिलमिलाये।
आये द्वार पर खोये मति।।
ऐ ! सखी साजन, ना सखी सम्पत्ति।
याद में उसकी नैना बरसे,
सुबह-सवेरे दिल ये तरसे।
प्रीत में उसकी सुध-बुध खोयी ।।
ऐ ! सखी साजन, ना सखी भाई।
अपनी तपन किसे बताये ?
ज्योंति ज्ञान की वह जलाये।
सूरज-सा उजियारा धरुँ ।।
ऐ ! सखी दीपक ? ना सखी गुरु।
#अनीता सैनी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें