पेड़ों की फुनगी पर बैठी,
आज सुनहरी शाम,
हर्षित मन, नयन
उम्मीद के द्वार।
विचलित मन,
तरसती आँखें, बेचैनी-सी
हिये के पार,
धीरे-धीरे क़दम बढ़ाती,
मायूसी से करती तक़रार,
पहुँची निशा मिलने द्वार ।
अरमानों की बरसी बदरी,
गोधूलि की बेला छिटकी,
हुई आहट द्वार,
चित्रभानु मिलने पहुँचा,
अब धरा के द्वार ।
पेड़ों की फुनगी पर बैठी,
आज सुनहरी शाम,
हर्षित मन, नयन
उम्मीद के द्वार।
@ अनीता सैनी
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