तमाम ख़्वाहिशें सीने में दफ़्न किये बैठा,
न जाने क्यों वो अरमान जलाये बैठा ?
आज को गुमराह कर कल को महफ़ूज़ किये बैठा,
दिल जला शमा बुझाये बैठा |
गणित ज़िदगी का दोहराता रहा चारों पहर,
उसके आकड़े फ़रेबी नहीं यही वो विचार |
न जाने कब तू दरवाज़े पर दस्तक दे,
इसी बहाने कुंडी हटाये बैठा |
बातें करता तेरे जाने पर सुकून से जीने की,
यादों को सीने से लगा, अश्कों में डूबा बैठा |
उसके फ़लसफ़े का कारण भी यही
कि वो ज़िंदगी से ज़्यादा तुझसे मुहब्बत कर बैठा |
-अनीता सैनी
न जाने क्यों वो अरमान जलाये बैठा ?
आज को गुमराह कर कल को महफ़ूज़ किये बैठा,
दिल जला शमा बुझाये बैठा |
गणित ज़िदगी का दोहराता रहा चारों पहर,
उसके आकड़े फ़रेबी नहीं यही वो विचार |
न जाने कब तू दरवाज़े पर दस्तक दे,
इसी बहाने कुंडी हटाये बैठा |
बातें करता तेरे जाने पर सुकून से जीने की,
यादों को सीने से लगा, अश्कों में डूबा बैठा |
उसके फ़लसफ़े का कारण भी यही
कि वो ज़िंदगी से ज़्यादा तुझसे मुहब्बत कर बैठा |
-अनीता सैनी
मेरा दर्द लिख दिया आपने तो बिटिया अनिता मुकेश सैनी
जवाब देंहटाएंतमाम ख़्वाहिशें सीने में दफ़न किये बैठा
जवाब देंहटाएंन जाने क्यों वो अरमान जलाये बैठा ?
आज को गुमराह कर कल को महफ़ूज किये बैठा
दिल जला शमा बुझाये बैठा
गणित जिंदगी की दोहराता रहा चारों पहर
उसके आकङे फरेबी नहीं यही वो विचार
न जाने कब तू दरवाजे पर दस्तक दे
इसी बहाने कुंडी हटाये बैठा
बातें करता तेरे जाने पर सुकून से जीने की
यादों को सीने से लगा, अश्क़ों में डूबा बैठा
उसके फलसफ़े का कारण भी यहीं
कि वो जिंदगी से ज्यादा तुझसे मुहब्बत कर बैठा |....
एक पिता के दर्द को खूब आपने इस रचना में अपने सब्दों में पिरोया है।
बेहतरीन जी।