वक़्त का आलम रहा कि वक़्त रहते सभँल गये |
हर बार की मिन्नतों से भी वो नहीं लौटे,
इंतज़ार में हम, वो दिल कहीं और लगा बैठे|
मयकशी के आलम में जलते रहे ता -उम्र,
झुलस गयी जिंदगी ,अँगारों पर चलना सीख गये |
आलम ही ऐसा बना कि बर्बाद हो गये ,
बर्बादी ने लगाये चार चाँद, मशहूर हो गये |
सारी शिकायतें सारे शिक़वे ख़त्म हो गये,
आज हम दानदाता और वह मोहताज़ हो गये |
- अनीता सैनी
- अनीता सैनी
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