शुक्रवार, अक्तूबर 19

वजह


                                                       
                                           


एक  अरसा  गुज़र  गया  तुम्हें  मुस्कुराये    हुए, 
महफ़िल  में   ख़ामोशी   की  क्या  थी  वजह |

मायूसी  का   लिबास  लपेट  लिया   बदन  से ,
ख़ुमारी चढ़ी  मन  में  सादगी  की  क्या थी वजह |

मुक़्क़दर   में  नहीं  हम,  बहलाकर  ठुकरा  दिया, 
आज    पहलू  में   बैठने   की  क्या  थी   वजह  |


तुम   माँझी    मैं   पतवार,   ज़िंदगी   थी   नैया, 
बीच  मझधार  में   छोड़  चले  क्या  थी   वजह  |

दफ़्न  कर   दिया  यादों  के  मंज़र  को  यूँ  ही ताबूत में, 
 सिसक  रहा  दिल  तरसती  आँखों  की  क्या  थी  वजह |

                        -अनीता सैनी 

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