कभी-कभी
वह अपने विचारों की कंघी से,
नाख़ुन कुरेदती हुई,
हौले से उसाँस में सिर्फ़,
हे राम ! हे राम !कहती,
वह अपनों से परेशान न थी ।
न वह उस वक़्त अपने प्रभु को,
स्मरण कर रही होती,
न शिकायतों का पिटारा,
उड़ेल कर बैठी,
उसकी बुद्धि क्षुब्ध और ,
विचार नये सफ़र के राही बन गये।
आज वह तलाश रही अपना वजूद,
इस कोने से उस कोने में,
जो कभी तरासा ही नहीं।
कुछ खोने का डर नहीं,
न चाहत उसे कल की,
उसाँस में फफक रहा वक़्त,
जो कही गुम हो गया,
तलाश रही अपने निशां,
जो उकेरे ही नहीं,
विचलित मन से अपने ही,
क़दमों की आहट तलाश रही,
कहाँ छूट गया वह वक़्त,
जो कभी उसका हुआ करता था?
यह जिंदगी का वह दोराहा है,
जहाँ कल नहीं मिलता,
आज उसके साथ नहीं रहता।
साँसें चल रही,
आहटों का कोलाहल न था,
कहाँ छूट गया वह वक़्त,
जो कभी जिंदगी रहा उसकी ?
यह ज़िंदगी का वह फ़क़त खुलासा था,
जो ज़िंदगीभर उसने ज़िंदगी के साथ किया।
@ अनीता सैनी 'दीप्ति'
बहुत ही सुंदर रचना ,यही जीवन हैं, सादर स्नेह सखी
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सखी
हटाएंसादर
कहाँ छुट गया वह वक़्त जो कभी जिंदगी रहा उसकी ?
जवाब देंहटाएंयह जिंदगी का वह फक़त खुलासा था,
जो जिंदगी भर उसने जिंदगी के साथ किया
बहुत सुन्दर....
वाह!!!
सस्नेह आभार सखी
हटाएंसादर
यह जिंदगी का वह दोराह है,
जवाब देंहटाएंजहाँ कल नहीं मिलता,
आज उसके साथ नहीं रहता।
बहुत खूब प्रिय अनीता -- अपने ही अंदाज में तुम्हारी ये रचना बहुत अलग सी और अपना खुद का रंग लिए है | सचमुच जिन्दगी की यात्रा में गुजरे कल का वापिस आना किसी भी तरह संभव नहीं |पर यादों से सबक लेकर आगे आशा की नयी राह चुन लेना ही जीवन की सार्थकता का परिचायक है | ये आशा बनी रहे | मेरा हार्दिक स्नेह आपके लिए |
प्रिय सखी तहे दिल से आभार आप का
हटाएंसादर
कहाँ छूट गया वह वक़्त,
जवाब देंहटाएंजो कभी उसका हुआ करता था?
यह जिंदगी का वह दोराहा है,
जहाँ कल नहीं मिलता,
आज उसके साथ नहीं रहता।
साँसों चल रही,
आहटों का कोलाहल न था,वाह बेहतरीन रचना सखी।
बहुत बढ़िया रचना,अनिता दी।
जवाब देंहटाएंजीवन यहीं है कभी सरल तो कभी जटिल है । बहुत सुन्दर सृजन सखी !
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