गूँगी गुड़िया
अनीता सैनी
गुरुवार, अक्तूबर 4
नारी (घनाक्षरी छंद)
ठिठुर रहा वजूद, यह न ध्यान रहा,
मैं करुणा की देवी, न स्वाभिमान रहा।
लाचारी की दहलीज़, न ख़ैरात की पोटली,
स्वाभिमान हक़ मेरा, यही आज की नारी ।
हुनर को तरासती, वजूद को संवारती,
बुलंदियों को छू रही, देश की यही नारी ।
- अनीता सैनी
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