ज़ख़्म दिल का आँखें बरस गयीं,
मोहब्बत रही वो मेरी, क्यों ख़ामोश रही ?
जज़्बात दिल की दीवारों में दफ़्न हुए,
आँखों में तैरते सपने एक पल में ओझल हुए,
सहम गयीं हवाएँ यही क़ुसूर रहा,
ख़ौफ़ बेरहम आँधियों का न यक़ीन हुआ,
वो पैग़ाम -ए -उल्फ़त सीने में समा गये ,
नहीं लौटोगे तुम यही बात रुला गयी
- अनीता सैनी
बहुत उम्दा
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