मार्मिक समय मन को स्तब्धता के,
घनघोर भंवर में डुबो बैठा,
गुरुर के हिलोरे मार रहा मन,
स्वाभिमान दौड़ रहा रग-रग में,
झलकी न आँखों से लाचारी,
न ज़िदगी ने भरा दम,
न लड़खड़ाये क़दम।
अकेलेपन के माँझे में उलझी
ज़िंदगी से करती तक़रार
नहीं वह लाचार,
समाज के साथ चलने का,
हुनर तरासती शमशीर रही वह |
देश ऋणी उसका,
हर रिश्ते की क़द्रदान रही वह,
उठते मंज़र को साँसों में पिरोया,
हर बला को सीने से लगाया,
न त्याग में कटौती,
न माँगी ख़ुशियों की हिस्सेदारी,
फिर क्यों कहता समाज,
शहीद की पत्नी को ,
बेवा और बेचारी ?
सराबोर क्यों न करें,
उस ख़िताब से,
जिसकी वह हक़दार ?
-अनीता सैनी
आपकी लिखी रचना 30 मई 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
सराहनीय रचना |
जवाब देंहटाएंशहीद की बेवा सिर्फ़ शहीद के नाम से ही क्यों पहचानी जाए? क्रांतिकारी दुर्गारानी वोहरा ने अपने पति के शहीद हो जाने के बाद भी अपनी क्रांतिकारी गतिविधियाँ जारी रखीं और एक क्रांतिकारी, एक समाजसेविका और एक अध्यापिका के रूप में, अपनी एक अलग पहचान बनाई.
जवाब देंहटाएंदेश ऋणी उसका,
जवाब देंहटाएंहर रिश्ते की क़द्रदान रही वह,
उठते मंज़र को साँसों में पिरोया,
हर बला को सीने से लगाया,
न त्याग में कटौती,
न माँगी ख़ुशियों की हिस्सेदारी,
फिर क्यों कहता समाज,
शहीद की पत्नी को ,
बेवा और बेचारी ?
सराबोर क्यों न करें,
उस ख़िताब से,
जिसकी वह हक़दार ?
सही कहा देश जिसका ऋणी है समाज उसे बेचारा बनाकर उसका जीना और दुस्वार कर देता है।
बहुत मार्मिक
जवाब देंहटाएंक्योंकि वीर पुरूष की पत्नी को किसी पुरस्कार में मिले तमगे की तरह मान लिया जाता है, समाज स्त्री को उसके स्वतंत्र अस्तित्व के साथ ससम्मान स्वीकार नहीं कर पाता शायद।
जवाब देंहटाएंबेहद गहन भाव लिए मर्म को स्पर्श करती विचारणीय अभिव्यक्ति।
बहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी रचना। अपने बलबूते जिंदगी जीती है, बेचारी क्यों ?
जवाब देंहटाएंसच कहा - इतना बड़ा त्याग करने वाली स्त्री बेबस और लाचार क्यों कहलाती है ? हृदयस्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंमर्म को भेदती हुई..... सशक्त शब्द।
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