और कह रही कुछ पल मेरे पास बैठ !
एक कप चाय का बहाना ही क्यों न हो,
कुछ पल सुकून से उसके पास बैठना,
उसकी ज़िदगी का अनमोल पल बन जाता,
उसका अकेलापन समझकर भी नहीं समझ पायी !
उसकी वो आँखें तरसती रहीं ,
धड़कन धड़कती रही,
ख़ामोश शब्द बार-बार पुकार रहे,
मैं व्यस्त थी,
या एक दिखावा ,
बड़प्पन के लिये
व्यस्तता का दिखावा लाज़मी था !
क्या माँगती है माँ ?
चंद शब्द प्यार के,
दो जून की रोटी,
ज़िदगी में लुटायी मुहब्बत का कुछ हिस्सा !
उसकी ज़िदगी के इस और उस,
दोनों छोर पर हम हैं,
और हमारी ...
वो कहीं नहीं...
हमारी ज़िंदगी में हर वस्तु का अभाव...
प्यार कर नहीं पाते..
पैसे होते नहीं..
और मकान छोटा लगता..
और माँ. ...
एक चारपाई पर पूरा परिवार समेट लेती है !
एक कप चाय का बहाना ही क्यों न हो,
कुछ पल सुकून से उसके पास बैठना,
उसकी ज़िदगी का अनमोल पल बन जाता,
उसका अकेलापन समझकर भी नहीं समझ पायी !
उसकी वो आँखें तरसती रहीं ,
धड़कन धड़कती रही,
ख़ामोश शब्द बार-बार पुकार रहे,
मैं व्यस्त थी,
या एक दिखावा ,
बड़प्पन के लिये
व्यस्तता का दिखावा लाज़मी था !
क्या माँगती है माँ ?
चंद शब्द प्यार के,
दो जून की रोटी,
ज़िदगी में लुटायी मुहब्बत का कुछ हिस्सा !
उसकी ज़िदगी के इस और उस,
दोनों छोर पर हम हैं,
और हमारी ...
वो कहीं नहीं...
हमारी ज़िंदगी में हर वस्तु का अभाव...
प्यार कर नहीं पाते..
पैसे होते नहीं..
और मकान छोटा लगता..
और माँ. ...
एक चारपाई पर पूरा परिवार समेट लेती है !