मुस्कुराता चेहरा,आँखें बोल गयीं
वक़्त का मेहमान,तुम्हारा ग़ुलाम बन गया
दहलीज़ का सुकून,मेरे नसीब से खेल गया
घर अनजान, सरहद जान बन गयी
तेरी यादों का धुआँ ,मेरी पहचान बन गयी
तरसती हैं निगाहें, ऐसे मेहमान बन गया
समेट ली सभी हसरतें, दिल के सभी जल गये
जिंदगी ख़ाली मकान, तन्हाइयाँ जान बन गयी |
घर के मेहमान, ज़िंदगी के मुसाफ़िर बन गये,
तुम्हारा गुनहगार, देश का पहरेदार बन गया |
-अनीता सैनी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें