दर्द - ए -ज़िंदगी की सौग़ात, मिला दर्द का मक़ाम,
ग़मों की आड़ में खिली, अश्कों की मुस्कान।
मुहब्बत के लिबास में, दर्द -ए -ग़म से हुई पहचान,
ग़मों का सितम क्या सितम ,अश्कों में खिले मुस्कान।
कुछ ज़ख़्म वक़्त का, वक़्त का रहा गुमान,
वक़्त की पैरवी में, खिली अश्कों की मुस्कान।
ख़ामोश ज़िंदगी , हाथ में दर्द का जाम,
सिसक रही साँसें सीने में अश्कों की मुस्कान।
ख़ता और ख़तेवार कौन ,वक़्त को खंगालता मन ?
सीने में दफ़न दास्ताँ , नम आँखों की मुस्कान।
# अनीता सैनी