मुद्दतों बाद निकली जब घर से,
ख़ामोशी में सन्नाटा पसरा पड़ा,
वट वृक्ष अश्रु बहा रहे,
धरा भी उलझन में खड़ी |
मोहब्बत से आबाद जहां,
तिनका तिनका बिख़र रहा,
कभी हरा भरा रहा आँचल,
बेबसी में आज सूखा पड़ा |
मानव बन हमदर्द,
दर्द को आग़ोश में भर,
कुछ क़दम भी न चला,
सज़दे में झुका सर और रो पड़ा,
बिछा दर्द का दरिया,
धरा को बहला रहा,
प्रेम की आड़ में
गुनाह अपना छुपाये खड़ा |
- अनीता सैनी
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
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सहृदय आभार आदरणीय
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अरे वाहह्हह... अति सुंदर..सार्थक सृजन👍👍
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय श्वेता दी
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हृदय स्पर्शी रचना बहुत गहरा प्रभाव छोड़ती रचना।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय कुसुम दी जी
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