शनिवार, दिसंबर 15

अदब-ए-जहाँ


                                                         
ज़िंदगी   ने  की  ज़िंदगी  से  वफ़ा,  
नाम  इश्क़ और मोहब्बत  कह गया, 
समा न  सका  जब   दिल   में,   
  अदब  से  बेवफ़ा  कह गया। 

सफ़र कुछ वक़्त का राह बदल गयी 
तन्हा  सफ़र  में  तन्हाइयों  का हो गया, 
सोख लिए अश्क़  धूप ज़िंदगी ने 
    बेदर्दी   बेवफ़ा  कह  गया। 

वक़्त  के  साथ  चला  राही  हमसफ़र बन  गया, 
ज़िंदगी  हसीं    महबूब  हमदम  बन गया , 
मिल  न   सकी   क़दमों   की  ताल,     
    बेअदवी  से   बेअदव   कह गया। 

   मक़ाम  ज़िंदगी  
  राह  में  मरघट  आ गया, 
 खोज  रहा  इज्ज -ओ -जहां ,  
वो खाली  हाथ आ गया, 
 इस जहां  का  दयानतदार , 
    बिन  इन्फाज   आ गया 
 मरघट में  बैठा अकेला, 
जहां  को अदब से देखता  रह  गया। 

   # अनीता सैनी 


9 टिप्‍पणियां:

  1. जिंदगी ने की जिंदगी से वफ़ा,
    नाम इश्क़ और मोहब्बत कह गया,
    समा न सका जब दिल में,
    अदब से बेवफ़ा कह गया ||
    बेहतरीन शायराना अंदाज मन को लुभा गई । वक़्त के साथ चला राही हमसफ़र बन गया, जिंदगी हसी महबूब हमदम बन गया मिल न सकी क़दमों की ताल, बेअदमी से बेअदब कह गया ||👌👌👌👌

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    1. आदरणीय पुरुषोत्तम जी - सह्रदय आभार आप का उत्साहवर्धन टिप्णी के लिए |
      सादर

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  2. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना ।

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