समंदर की लहरों पर हमनें भी पैगाम लिखा,
दर्द को छुपाया ,मोहब्बत को सरे आम लिखा !!
जंग जिंदगी की , क़त्ल अरमानों का हुआ,
सुर्खरु जनाजे में नाम,दफ़न प्यार का अफ़साना हुआ !!
जिंदगी पर तोहमत कैसी , उम्र -ए -दराज़ मिले दिन चार ,
दो में बुनते रहे सपनें , दो में किया इंतजार !!
ज़माने का ये हुनर, अपनों ने आज़माया है
किसी का तीर, किसी की कमान से चलाया है !!
हो सितम की इंतहा , रो रही जिंदगी ,
कहाँ मिलेगा परवरदिगार , यही कह रही बंदगी ?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें