मन से निकला साज़,महकी बन ममत्त्व की आवाज़ ,
गूँज रही कण-कण में,बन मधुर वर्ण कंठ का राज।
क़दमों में थिरकती ताल, कंठ सजे सुन्दर साज़ ,
मधुर वर्ण बन निखरी,हिंदी हृदय का ताज।
मोहब्बत में लिखा फ़रमान, हाले दिल ने किया बखान,
हिंद देश की हिंदी, मिला मातृत्व का सम्मान।
हाथ थामे रखना, कभी चाहत को न क़ुर्बान करना,
लबों पर सजाये रखना, यूँ बेगानापन न दिखाना।
ठुकरा रहे हो ममत्त्व कल फिर लौट आओगे ,
गुमराह हुए ज़िंदगी की राह में,तलाश में मेरी नज़र आओगे।
अनीता सैनी
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