गुरुवार, जनवरी 10

हिंदी


                           
मन से निकला साज़,महकी बन ममत्त्व  की आवाज़ ,
गूँज रही कण-कण में,बन मधुर वर्ण कंठ का राज। 

क़दमों  में थिरकती ताल, कंठ सजे सुन्दर साज़ ,
मधुर  वर्ण बन निखरी,हिंदी  हृदय  का  ताज। 

मोहब्बत में लिखा फ़रमान, हाले  दिल ने किया बखान, 
हिंद  देश  की  हिंदी,  मिला  मातृत्व   का  सम्मान। 

हाथ थामे रखना, कभी   चाहत को न क़ुर्बान करना,
लबों  पर सजाये रखना,  यूँ  बेगानापन  न  दिखाना। 

ठुकरा  रहे  हो  ममत्त्व    कल  फिर  लौट  आओगे ,
गुमराह हुए  ज़िंदगी  की  राह में,तलाश  में  मेरी नज़र आओगे। 

               अनीता सैनी 

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