मन माही प्रीत में उलझे
ह्रदय री बात बताऊँ रे
मन बैरी बौराया अली
कैसे इसे समझाऊँ रे ?
पी मिलन की हूक उठी
सुध-बुध अपनी गवायी रे
महल-अटरिया सूनी लागे
कैसे जी बहलाऊँ रे ?
सखी-सहेली,झूला-झूले
तन पे सौलह शृंगार रे
मैं विरहिणी,विरह सीचूँ
जगत प्रीत बिसरायी रे
तीज-त्योहार राह निहारुँ
साजन बसे किस देश रे ?
चाँद चढो गिगनार अली
कैसे अरक लगाऊँ रे ?
# अनीता सैनी
bahut sunder
जवाब देंहटाएंbahut badhiya
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंसखी बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंआप को बहुत सा सस्नेह
सादर