अपने हिस्से की ज़िंदगी, मोहब्बत से गूंथने लगे ,
दमन अवसाद का, तृष्णा को दबाने लगे |
ज़िंदगी की दौड़ में, कृत्रिमता को ठुकराने लगे,
किया क़दमों को मज़बूत ,अस्तित्त्व अपना बताने लगे |
इंसान हैं हम, इंसान से मोहब्बत करने लगे,
मशीनों की मोहब्बत, दोस्ती ठुकराने लगे |
तन की थकान, मन के अवसाद से निजात पाने लगे ,
हृदय का जुनून , चाहत में बुनने लगे |
चाहतों के दरमियाँ दायरे बनने लगे ,
क्यों घसीटें मन को, इंसानियत समझने लगे ?
बच्चों से मोहब्बत, प्रतियोगिता भुलाने लगे ,
बनें नेक इंसान, ठुकरेस ठुकराने लगे |
खा रहे इस नश्ल को, वो कीड़े दफ़नाने लगे ,
कृत्रिमता को ठुकरा, प्रकृति को अपनाने लगे |
- अनीता
बहुत ही बेहतरीन
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार आदरणीय अनुराधा जी
जवाब देंहटाएंसादर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (26-01-2019) को "गणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक-3228) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
गणतन्त्र दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सह्रदय आभार आदरणीय चर्चा में स्थान देने के लिए
जवाब देंहटाएंसादर
हमेशा की तरह लाजबाब ,स्नेह सखी
जवाब देंहटाएंप्रिय कामिनी जी - बहुत सा स्नेह सखी
हटाएंऔर तहे दिल से आभार आप का
सादर
अच्छी बात है
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय
हटाएंसादर
प्राकृति को अपनाने लगे ...
जवाब देंहटाएंसुंदर संदेश लिए हर शेर ... बहुत लाजवाब लेखन ...
आदरणीय दिगम्बर नास्वा जी आप का ब्लॉग पर तहे दिल से स्वागत है बहुत अच्छा लगा आप ब्लॉग पर पधारे .....उत्साहवर्धन टिप्णी के लिए सह्रदय आभार आप का |
हटाएंसादर
बहुत शानदार
जवाब देंहटाएंसह्रदय आभार आदरणीय लोकेश नदीश जी ...आप का ब्लॉग पर स्वागत है |
हटाएंसादर
each word has a true meaning and deep imapact.... Anita Ji behad sundar "shandar"
जवाब देंहटाएंThaks sir. Have a good day .
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२८ जनवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सस्नेह आभार आदरणीय श्वेता जी हमक़दम में मुझे स्थान देने के लिए |
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर अनीता जी,
जवाब देंहटाएंआशा, आत्म-विश्वास, कर्मठता और लोक-कल्याण की भावना, अवसाद को पास फटकने भी नहीं देंगे. फिर तो जो भी होगा - सुन्दर होगा, शिव होगा.
आदरणीय गोपेश जैस्वाल जी आप का ब्लॉग पर तहे दिल से स्वागत है बहुत दिनों बाद आप की प्रतिकिर्या मीली बहुत अच्छा लगा |सही कहा आप ने अवसाद का निवारण सकारात्मकता ही है |बहुत सुन्दर टिप्णी के लिए आप का सह्रदय आभार |
हटाएंसादर
सह्रदय आभार आदरणीय आप का
जवाब देंहटाएंसादर
तन की थकान और मन के अवसाद को मिटाना ही होगा
जवाब देंहटाएंकृत्रिमता को छोड़ प्रकृति को अपनाकर जिन्दगी के सत्य को स्वीकार करना होगा....
बहुत ही लाजवाब... सकारात्मक भावों से भरी...
वाह!!!
सस्नेह आभार आदरणीय सुधा जी -बहुत ही अच्छी टिप्णी ,मन को मोह गए आप के शब्द. ..
हटाएंआभार
सादर
बहुत खूब........बेहतरीन सृजन आदरणीया
जवाब देंहटाएंसह्रदय आभार आदरणीय रविन्द्र जी
हटाएंसादर
बहूत ही बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंजी आभार
हटाएंसादर
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (09-10-2019) को "विजय का पर्व" (चर्चा अंक- 3483) पर भी होगी। --
जवाब देंहटाएंसूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--विजयादशमी कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय फिर चर्चापंच पर स्थान देने के लिये
हटाएंसादर
बेहतरीन और लाजवाब सृजन ।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय सखी सुन्दर समीक्षा और उत्साहवर्धन हेतु
हटाएंसादर
काश कि आपके सुन्दर सपने सच हो जाएँ !
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर बहुत बहुत शुक्रिया आप का बहुत अच्छा लगा आप की सुन्दर समीक्षा पढ़ |
हटाएंकाश मेरे सपनें सच हो मेरी भी यही मनसा है
प्रणाम सर
सादर