शब्द मधुर हों जनमानस के,
दिखा नियति ऐसा कोई
करुण हृदय से सींचे प्रीत
फूले-फले प्रीत की बेल |
प्रज्वलित हो दीप ज्ञान का,
साँझ की मधुर निश्छल छाया में,
ढुलकता मोह मनुज नयन से,
बंजर मानवता महके प्रीत में |
सुख-दुःख दोनों कर्म के साथी,
श्रम-विश्राम का उदीप्त यही खेल,
नीलाअंबर के निश्छल नयन से,
गूँथे तारिकाओं संग श्रम की बेल |
मानवता की मधुर गंध भीगे प्रीत से,
भीनी-भीनी महके,
अनुराग हृदय में नूपुर बन खनके,
रहे धरा पर तृप्त लालसा,
श्यामा शृष्टि महके |
- अनीता सैनी