हक़ अपना बाँट रहा, सजी रसूखदारों की दुकान |
दरियादिली में गया डूब ,ज़िंदगी को गया भूल ,
महंगाई को सर पर बिठा,दर्द में गया झूल |
मुहब्बत की मारामारी,सभी को एक बीमारी,
हाथों में सभी के फोन, क्यों अकेलेपन की सवारी ?
सोच-समझ में उलझा, दिन-रात गोते लगा रहा ,
चक्रव्यूह बनी ज़िदगी,ताना-बाना बुन रहा |
आँखों पर पट्टी प्रीत की, शब्द मधुर बरसाये,
मोह रहे शब्द नेताओं के,प्रीत में जनता सोये |
एक तबका दर्द में डूबा रहा,नेता फूल बरसा रहे,
मीठी-मीठी बातों से,पेट की आग बुझा रहे |
- अनीता सैनी
बहुत सुंदर जी
जवाब देंहटाएंव्यंगात्मक रचना
सह्रदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
यथार्थ पर सुन्दर व्यंग्यात्मक रचना ।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सखी
हटाएंसादर
यथार्थ जीवन सजीव चित्रण
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
सह्रदय आभार सखी
हटाएंसादर
आम इन्सान तो नेताओं से ठगे जाने और उन से अपना खून चुसवाने के लिए पैदा हुआ है. यही उसकी नियति है.
जवाब देंहटाएंसह्रदय आभार आदरणीय | बहुत ख़ुशी हुई आप की टिप्णी मिली |
हटाएंक्या यह नियति कभी नहीं बदलेगी ?
देख कर लग रहा है हम विनाश की और अग्रसर हो रहे है |
सादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसह्रदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंसह्रदय आभार आदरणीय आप का
हटाएंसादर
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (13-02-2019) को "आलिंगन उपहार" (चर्चा अंक-3246) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सह्रदय आभार आदरणीय चर्चा में स्थान देने के लिए |
हटाएंसादर
सुन्दर व्यंग रचना
जवाब देंहटाएंसह्रदय आभार
हटाएंसादर
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 13 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सह्रदय आभार आदरणीया पम्मी जी
हटाएंपांच लिंकों का आनन्द में मुझे स्थान देने के लिए |
सादर
बेहतरीन रचना सखी
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सखी
हटाएंसादर
बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंसह्रदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
सोच समझ में उलझा, दिन - रात गोते लगा रहा ,
जवाब देंहटाएंचक्रव्यूह बनी जिंदगी, ताना - बाना बुन रहा |
बहुत खूब ।
सह्रदय आभार आप का
हटाएंसादर
बहुत लाजवाब
जवाब देंहटाएंआदरणीय लोकेश जी - सह्रदय आभार
हटाएंसादर
सत्य वचन बेहद सार्थक सृजन अनीता जी..👌👌
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सखी
हटाएंसादर
वाह धार दार यथार्थ ।
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना सखी।
सस्नेह आभार सखी
हटाएंसादर
बेहतरीन रचना सखी
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सखी
हटाएंसादर
एक तबका दर्द में डूबा रहा, नेता फूल बरसा रहे,
जवाब देंहटाएंमीठी - मीठी बातों से , पेट की आग बुझा रहे |
सटीक प्रस्तुति....
बहुत ही लाजवाब।
सस्नेह आभार सखी
हटाएंसादर
सुंदर लेखन । बहुत-बहुत बधाई आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंसह्रदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय
हटाएंसादर
जनता की कमियों एवं पीड़ा को व्यक्त करती सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंसह्रदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
हर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात आदरणीय 🙏🙏
हटाएंउत्साहवर्धन टिप्णी के लिए, तहे दिल से आभार आप का |
सादर