सोमवार, फ़रवरी 11

सत्य अहिंसा का पुजारी


                                                         
              सत्य-अहिंसा का पुजारी, बना आम  इंसान, 
           हक़ अपना बाँट रहा, सजी  रसूखदारों  की दुकान |

            दरियादिली में  गया  डूब ,ज़िंदगी को गया भूल ,
              महंगाई को सर पर बिठा,दर्द  में गया  झूल |

            मुहब्बत  की  मारामारी,सभी  को  एक  बीमारी, 
          हाथों में सभी के फोन, क्यों अकेलेपन  की  सवारी ?

           सोच-समझ में उलझा, दिन-रात गोते लगा रहा ,
           चक्रव्यूह  बनी ज़िदगी,ताना-बाना  बुन  रहा |

          आँखों  पर   पट्टी  प्रीत  की,  शब्द  मधुर  बरसाये, 
          मोह  रहे   शब्द  नेताओं  के,प्रीत  में  जनता  सोये |

             एक तबका दर्द  में  डूबा रहा,नेता फूल बरसा रहे, 
           मीठी-मीठी  बातों  से,पेट  की  आग बुझा  रहे |

                             -  अनीता सैनी 

43 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर जी
    व्यंगात्मक रचना

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  2. यथार्थ पर सुन्दर व्यंग्यात्मक रचना ।

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  3. यथार्थ जीवन सजीव चित्रण
    सुंदर रचना

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  4. आम इन्सान तो नेताओं से ठगे जाने और उन से अपना खून चुसवाने के लिए पैदा हुआ है. यही उसकी नियति है.

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    1. सह्रदय आभार आदरणीय | बहुत ख़ुशी हुई आप की टिप्णी मिली |
      क्या यह नियति कभी नहीं बदलेगी ?
      देख कर लग रहा है हम विनाश की और अग्रसर हो रहे है |
      सादर

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  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति।

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  6. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (13-02-2019) को "आलिंगन उपहार" (चर्चा अंक-3246) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. सह्रदय आभार आदरणीय चर्चा में स्थान देने के लिए |
      सादर

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  7. सुन्दर व्यंग रचना

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  8. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 13 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सह्रदय आभार आदरणीया पम्मी जी
      पांच लिंकों का आनन्द में मुझे स्थान देने के लिए |
      सादर

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  9. सोच समझ में उलझा, दिन - रात गोते लगा रहा ,
    चक्रव्यूह बनी जिंदगी, ताना - बाना बुन रहा |
    बहुत खूब ।

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  10. सत्य वचन बेहद सार्थक सृजन अनीता जी..👌👌

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  11. वाह धार दार यथार्थ ।
    सार्थक रचना सखी।

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  12. बेहतरीन रचना सखी

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  13. एक तबका दर्द में डूबा रहा, नेता फूल बरसा रहे,
    मीठी - मीठी बातों से , पेट की आग बुझा रहे |
    सटीक प्रस्तुति....
    बहुत ही लाजवाब।

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  14. सुंदर लेखन । बहुत-बहुत बधाई आदरणीय ।

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  15. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  16. जनता की कमियों एवं पीड़ा को व्यक्त करती सुन्दर रचना.

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  17. हर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें

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    1. शुभ प्रभात आदरणीय 🙏🙏
      उत्साहवर्धन टिप्णी के लिए, तहे दिल से आभार आप का |
      सादर

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