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बुधवार, फ़रवरी 6

यादों का झौंका

                 

                          

                                   

                     यादों के झौंके  संग 
                  मंद-मंद मुस्कुराती,आसमां को 
                        एक   टक  निहारती   
                       अतीत  के  पन्नों   को 
                        विचारों  की  कंघी  से 
                        धीरे-धीरे कुरेदती   
                        किन्हीं  ख़्याल में गुम  
                       वजुद  तलाशने  लगी 
                          कभी  तन्हा  रही 
                        आज सोई उम्मीद 
                     फिर  डग  भरने  लगी 
                       थामे  रहती  अँगुली 
                      लड़खड़ाते  थे  क़दम 
                   वो आज सहारा बनने लगा 
                     मुद्दतों  बाद  मुस्कुराई 
                      एक सुकून की साँस 
                  दामन में खिलखिलाने लगी, 
                       घनघोर  अंधरे  में 
                      रफ़्ता-रफ़्ता  महकी 
                     मेहनत  रंग भरने  लगी  
                     गुरुर  से धड़कता सीना 
                   उसके  कंधे  मेरे  कंधों को 
                     लाँघकर  जाने  लगे  
                     नम   हुई  आँखें  आज 
                 वात्सल्य  भाव  से मुस्कुराने लगी |

                          - अनीता सैनी     

26 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति, अनिता दी।

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    उत्तर
    1. जी ज्योति बहन |आप का तहे दिल से सुक्रिया |
      बहुत सा स्नेह |
      सादर

      हटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-02-2019) को "यादों का झरोखा" (चर्चा अंक-3241) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुत सुंदर रचना सखी

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  4. गुरुर से धड़कता सीना
    उसके कंधे मेरे कंधों को
    लांघ कर जाने लगें ...वाह क्‍या खूब लिखा है अनीता जी

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  5. वाह बहुत सुन्दर वात्सल्य से भरी कोमल अभिव्यक्ति ।

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  6. उसके कंधे मेरे कंधों को
    लांघ कर जाने लगें
    नम हुई आँखें आज
    वत्सल्य भाव से मुस्कुराने लगी |..... बहुत सुन्दर!

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  7. ममत्व की मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति।

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  8. उसके कंधे मेरे कंधों को
    लांघ कर जाने लगें
    नम हुई आँखें आज
    वत्सल्य भाव से मुस्कुराने लगी |



    बहुत सुन्दर रचना ।

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  9. घनघोर अंधरे में रफ़्ता रफ़्ता महकी मेहनत रंग भरने लगी
    बहुत सुन्दर.... बेहतरीन...

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    उत्तर
    1. सस्नेह आभार सखी उत्साहवर्धन टिप्णी के लिए |
      सादर

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  10. "विचारों की कंघी"

    सुंदर प्रयोग

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