मोह माया में फंसा जीवन,
इस की यही कहानी,
सिसक रहा हृदय,
नहीं मिटती बेईमानी |
सृजन बीच छिपी पीड़ा,
होठों से कैसे मुस्काऊँ,
रुंधे कंठ बुझे मन के,
कैसे आवाज़ लगाऊँ |
झर रहे प्रीत फूल धरा के,
कैसी हुई बौछार गगन से,
मादकता में फिर उलझ गये,
हार गए चंचल चितवन से |
तपन मरु के सिसके छाले,
चितादीप-सा जलता जीवन,
हृदय में धधक रही ज्वाला,
समय धार पर चलता जीवन |
छूट रहीं साँसें तन की,
क़ीमत जीवन की तब समझे,
जब तक रहे इस दुनिया में,
रहे मोह माया में उलझे |
- अनीता सैनी
लुढ़का नयनों से यौवन,
बन मधुवन की लाली,
मदिर प्रेम में डूबा मन,
नयन बने शरबत की प्याली |
मानस हृदय की वेदी पर,
विराजित करुण स्वभाव,
सुख-दुःख की सीमा बन बैठे,
खोले मन के कोमल भाव |
सजा रही थी पलकों पर,
वह नीर गगन में छलका,
ऊषा की निर्मल किरणों-सा,
वह प्रेम नयनों में झलका |
बैठ हृदय में, उलझ रही,
मासूम स्मृति रेखा,
पल-पल झाँक रही नयनों से,
विचलित प्रीत को देखा |
पीड़ा नयनों में सूख गयी,
जब उर में पड़ा था सूखा,
घूम रही करुण कटाक्ष,
जब प्रेम पराग का रुखा |
- अनीता सैनी
न रूठूँगी तुम से ऐ-ज़िंदगी,
बन मधुमास मिलेंगे दोबारा,
लौटेंगे हसीं ख़्वाब, नक्षत्र बन,
चमकेगा सौभाग्य का सितारा |
आँखों में उमड़े स्वप्न गूँथूँ,
दमकना ज़िंदगी तुम दुल्हन बनके,
अस्तित्त्व अपना जताने उठना,
झलकना आँखों से अश्रु-तारे बनके |
हो न अनहोनी का अंदेशा,
तुम निर्भीक तेज़ हृदय को पिला देना,
अटल पाषाण-सा वक़्त का साथ,
ज़िंदगी के हाथों में थमा देना |
न गुज़रेगें फिर इस राह से,
एक घूँट मोहब्बत का ज़िंदगी को पिला देना,
पथ नहीं यह जीवन का,
प्रीतदीप राह में जला देना |
दर्द का जीवन में बहे दरिया,
ऐसा संचार साँसों में बहा देना,
छूट रही ज़िंदगी , बन सैकत,
कुछ पल का ठहराव दिला देना |
तड़प रही मानवता एक घूँट अमृत पिला देना,
थामे वक़्त की अँगुली चलना सिखा देना |
काँच के टुकड़ों-सा बिखर रहा मानव,
साँसों की अहमियत ज़िंदगी तुम बता देना,
तिमिर में छुपाया मुँह,
रो रहा तेज़ तुम अश्रु पोंछ देना |
-अनीता सैनी
देख धरा पर आवती, प्रलय भरी-सी छाँव |
अँधा मानुष है बना , थके हुए है पाँव ||
द्वेष बवंडर उड़ रहा, उगे गधे के सींग |
होकर भी अभिमान में , मनुज मारता डींग ||
देखा-देखी बढ़ रही , बड़े बेल की बात |
अपनों को ही मिल रही, मनचाही सौग़ात ||
आती पश्चिम से हवा, मिटी मनुज की आन |
दुनियाभर को सभ्यता, पूरब करता दान ||
आँधी भू पर उड़ रही, टपक रहा है ख़ून |
जीभ बोलती बोल है, कोरे है मज़मून ||
जोड़े धन की गाठड़ी , काया नोंचे काक |
माया मन को तोड़ती, मानुष खाये ख़ाक ||
- अनीता सैनी
होंठों की मुस्कान से तुम,
आँख का पानी छुपाओगी,
हृदय की पीड़ा,
धड़कनों को न बताओगी,
साँसों में जी उठेगी बेचैनी ,
तुम उसे कैसे बहलाओगी ?
धड़कनों को समझाने, लौट आऊँगा,
मीठी मुस्कान से दिल जलाऊँगा |
भाग्य बन मैं तेरा,
भाग्यशाली कह बुलाऊँगा |
वेदना यूँ किसी को, सानिध्य से निहाल नहीं करती,
ज़रुर पुण्य से लिये तूने फेरे |
आँसुओं से धोती हो पद मेरे,
प्रबल प्रेम संग बैठा हूँ मैं दामन में तेरे |
यूँ गोद में बिठा निहाल नहीं करती वेदना,
समेटे बैठे हो हृदय में सागर,
मुस्कुरा देती हो सवेरे |
नदी की धार-सी बहती वेदना,
साँसों से कैसे रोक पाओगी ?
न समझाऊँगा तुझे कि ,
यही पुण्य है जीवन का तेरे |
मैं जी रहा हूँ तुझमें,
तुम जीने की इच्छा तौल रही,
दौड़ रहा हूँ मैं समय से तेज़,
तुम सूखे पत्तों में तलाश रही जीवन मेरा |
- अनीता सैनी
प्रीत री लौ जलाये बैठी,
धड़कन चौखट लाँघ गयी,
धड़क रहो हिवड़ो बैरी,
हृदय बेचैनी डोल रही |
रुठ रही है ख़ुशीयाँ पीवजी,
गौरी हँसना भूल गयी,
अब पधारो पिया प्रदेश,
गौरी थारी बोल रही |
अब के फ़ागुन लौट आवो तुम,
झील-सी अँखियाँ रीत गयी,
ओढ़े बैठी प्रीत री चुनड़,
हाथों में मेहँदी घोल रही |
बह गया काजल आँखों का,
दर्द में अंखियां डूब गयी
सिसक रहे घर-द्वार पीवजी
साँसें धीरज तोल रही |
- अनीता सैनी
मुग्ध हुआ मन मीरा का, किया एहसासों का शृंगार,
होली के पावन पर्व पर ,नयन करे श्याम का इंतज़ार |
हृदय अंकुरित प्रीत रंग , व्याकुल मन की पुकार,
बदरी बन बरसे प्रीत रंग, हो श्याम रंगों की बौछार |
मचल उठा मन मीरा का, आया होली का त्योहार,
श्याम बिन आँगन सूना, कैसे करें रंगों से प्यार |
छायी फागुन रुत सुहानी, किया दहलीज़ का शृंगार,
अश्रु बन लुढ़क रहा, श्याम रंगों में प्यार |
- अनीता सैनी
हवा ही ऐसी चली ज़माने की, कि बदनाम हो गयी,
अमीरी बनी सरताज़, ग़रीबी मोहताज़ हो गयी |
नशा शोहरत का सर चढ़ गया है इस क़दर,
ग़रीबी की हिमाक़त देखो यहाँ सरेआम हो गयी |
सदा रौंदी गई कुचली गयी अभावों के तले,
ग़रीबी मिटाने की कोशिशें भी नाक़ाम हो गयीं |
ऐसा भी न था कि ज़माना मिटा न सका मेरी हस्ती,
इत्तिफ़ाक़ ही ऐसा था,कुछ समा गयी मुझमें,
किसी को मैं निगल गयी |
- अनीता सैनी
कुछ कहना चाहती है ख़ामोशी,
ढूँढ़ती हुई भटकती है दर-ब-दर,
शब्द |
धड़कनों से,
आँखों में झाँ कती है,
जताती है अस्तित्व,
की वो भी है,
शब्द |
जड़ता की ख़ामोशी में
सिसक रहे शब्द भी
शब्द हैं |
दामन में सिमटी
घर के कोने से झाँकती
निःशब्द ख़ामोशी
शब्द है |
ख़ामोशी सँजो देती स्वप्न,
स्वप्न ज़िंदगी,
ज़िंदगी शब्द,
शब्दों में होती ख़्वाहिशें,
ख़्वाहिशें बन जाती ज़िंदगी,
ज़िदगी बुनती है,
शब्द |
पर यादें ख़ामोश नहीं
चीख़तीं चिल्लातीं हैं
न जाने कितने शब्दों का
कोहराम है यादें |
वह ख़ामोशी की तरह रेंगती नहीं
तड़पती नहीं,
अपनी मौत मरती नहीं
सिर्फ़ बस जाती है
दिल में |
ख़ामोशी शब्द ढूँढ़ती है
आँखों में तलाशती है परिचय
हवाओं में ढूँढ़ती
शब्द |
यादें झलक जाती है
दिल से
नि:शब्द |
- अनीता सैनी
वक़्त के थपेड़ों से,
मन कुछ डोल-सा गया,
बुनियाद पर किया विचार,
फिर आज को तौल-सा गया |
ख़तरे में अस्तित्त्व,
छूट रही पहचान,
गर्दिश चेहरे पर,
खोखला हुआ इनाम |
झूठ, हिंसा, भारी तन पर,
रहा, सत्ता-शक्ति का हाथ,
राह चुनी प्रीत की,
हुई द्वेष के साथ |
समय के सागर में,
निष्ठा और आत्मविश्वास,
क़दमों को गढ़ाये रखा,
साथ अटूट विश्वास |
- अनीता सैनी
||प्रभात ||
प्रभात की निर्मल छाया,
निखरी नीलाकाश में,
लिया नव ज्योति, नव जीवन,
मुस्कुराये स्वछंद प्रभात में,
शशि किरणें प्रीत में पुलकित,
प्रकृति शरद उच्छवास में |
||साँझ ||
नीलाबर की संगिनी,
चले सिंदूरी मंथर चाल,
सिंदूरी, चंदन का समागम,
ओढ़ा प्रीत रंग रेशम जाल,
सुदूर क्षितिज पर सुनहरी,
किरणों से पूछे प्रिय हाल |
- अनीता सैनी
मोह में मुग्ध सृष्टि,
शशि संग अनुराग अनूठा ,
हृदय में वात्सल्य भाव उठा,
दहलीज़ का दामन डोल,
शशि-किरणों का किया शृंगार |
नाज़ुक हाथ,
थामें प्रीत के कोमल तार,
मुग्ध भाव से बिखेर रही,
मन भावों के तार |
प्रीत रुप शृंगार किया,
अधरों पर मीठी मुस्कान,
कल्पित कृति बोल उठी,
किया मन भावों का शृंगार |
नाम मानव दिया,
स्नेह, संवेदना प्रवाह किया,
करुणा रुप धर अँजुली में,
सोये हृदय पर किया सवार |
शशि का तेज़,
नीर नयन में तार दिया,
पवन की पीर दबा हृदय,
प्राणों का किया संचार |
द्वेष भाव का ओझल रंग,
मानव मन पर सवार हुआ,
किया सुन्दर कृति का संहार,
महक रही प्रीत की बस्ती,
अँगारों में दिया तार |
भूल गया अस्तित्त्व अपना,
घटना को दिल में उतार लिया,
मूक द्वेष के शब्द गहरे,
द्वेष बना अभिशाप मनु का ,
प्रीत का दामन हुआ तार-तार |
- अनीता सैनी