आँख का पानी छुपाओगी,
हृदय की पीड़ा,
धड़कनों को न बताओगी,
साँसों में जी उठेगी बेचैनी ,
तुम उसे कैसे बहलाओगी ?
धड़कनों को समझाने, लौट आऊँगा,
मीठी मुस्कान से दिल जलाऊँगा |
भाग्य बन मैं तेरा,
भाग्यशाली कह बुलाऊँगा |
वेदना यूँ किसी को, सानिध्य से निहाल नहीं करती,
ज़रुर पुण्य से लिये तूने फेरे |
आँसुओं से धोती हो पद मेरे,
प्रबल प्रेम संग बैठा हूँ मैं दामन में तेरे |
यूँ गोद में बिठा निहाल नहीं करती वेदना,
समेटे बैठे हो हृदय में सागर,
मुस्कुरा देती हो सवेरे |
नदी की धार-सी बहती वेदना,
साँसों से कैसे रोक पाओगी ?
न समझाऊँगा तुझे कि ,
यही पुण्य है जीवन का तेरे |
मैं जी रहा हूँ तुझमें,
तुम जीने की इच्छा तौल रही,
दौड़ रहा हूँ मैं समय से तेज़,
तुम सूखे पत्तों में तलाश रही जीवन मेरा |
- अनीता सैनी
विरह वेदना की भावाभिव्यक्ति करती एक शानदार रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय लोकेश जी
हटाएंसादर नमन
वाह! बहुत उम्दा रचना!
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
विरह की बेहतरीन अभिव्यक्ति सखी
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सखी उत्साहवर्धन टिप्णी के लिए
जवाब देंहटाएंसादर नमन
जवाब देंहटाएंनदी की धार सी बहती वेदना
साँसों से कैसे रोक पाएगी ?
न समझाउँगा तुझे कि
यही पुण्य है जीवन का तेरे
बहुत गहनता लिये भाव रचना सखी ।
सस्नेह आभार सखी
हटाएंसादर
वाह! बहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट- इश्क़ और कश्मीर।
iwillrocknow.com
आदरणीय नितीश तिवारी जी तहे दिल से आभार आप का
जवाब देंहटाएंसादर नमन
अति सुंदर रचना आपकी कलम सदा आकाश को छुती रहे बिटिया
जवाब देंहटाएंप्रणाम आदरणीय
हटाएंसादर नमन
मर्मस्पर्शी चिंतन चित्रण अविस्मरणीय औ अभिनंदनीय है।
जवाब देंहटाएंजी सादर धन्यवाद सुप्रभातम् जय श्री कृष्ण राधे राधे जी।
🙏 👏 🙏
सहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर नमन
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-03-2019) को "पन्द्रह लाख कब आ रहे हैं" (चर्चा अंक-3277) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय चर्चा में मुझे स्थान देने के लिए
हटाएंसादर नमन
वाह !....लाजवाब
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार आदरणीय
हटाएंसादर नमन
बहुत ही सुंदर रचना......
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार कामिनी बहन
हटाएंआप को बहुत सा स्नेह
सादर
मैं जी रहा हूँ तुझ में
जवाब देंहटाएंतुम जीने की इच्छा तौल रही
दौड़ रहा हूँ मैं समय से तेज़
तुम सूखे पत्तों में मेरा जीवन तलाश रही
बहुत सुन्दर विरह भावाभिव्यक्ति....
सस्नेह आभार आदरणीया
हटाएंसादर नमन
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार आदरणीय
हटाएंसादर
अति उत्तम सखी।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सखी
हटाएंसादर
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१८ मार्च २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सहृदय आभार श्वेता जी
हटाएंसादर
बढ़िया
जवाब देंहटाएंप्रणाम आदरणीय
हटाएंसादर नमन
प्रिय अनीता-- आपकी ये रचना मुझे खासतौर पर पसंद आई | बहुत ही संवेदनशील रचना है जो विरह की पीड़ा को बखूबी व्यक्त करती है --
जवाब देंहटाएंदौड़ रहा हूँ मैं समय से तेज़
तुम सूखे पत्तों में तलाश रही जीवन मेरा !!!!!
बहुत खूब और वाह !!! सस्नेह शुभकामनायें और मेरा प्यार |
सस्नेह आभार रेणु बहन
हटाएंहोली की हार्दिक शुभकामनायें आप को
सादर
विरह के पलों को मासूमियत से समेटा है ...
जवाब देंहटाएंजीवन की आशा निराशा के पल बांधे हैं रचना में ... बहुत खूब ...
सहृदय आभार आदरणीय
हटाएंहोली की हार्दिक शुभकामनायें आप को
सादर