संस्कारों का पहन गहना,
बड़ी शान से चलने लगी,
समेटे होंठों की मुस्कान,
समेटे होंठों की मुस्कान,
गीत प्रीत के गाने लगी |
इंतज़ार में सिमटे दिन,
इंतज़ार में सिमटे दिन,
वही रात गुज़रने लगी,
पहरेदार वह देश का,
पहरेदार वह देश का,
यही सोच वह मुस्कुराने लगी |
गुरुर से धड़कता सीना,
झलका आँखों से पानी,
क्या कहेगा समाज ?
क्या कहेगा समाज ?
यही से शुरू हुई वह कहानी |
सुशील और शालीनता की जद्दोजेहद,
सुशील और शालीनता की जद्दोजेहद,
मन में लिए लाखों सवाल,
आदर्श रूप का दिखा आईना,
आदर्श रूप का दिखा आईना,
उभर आयी एक मिशाल |
संस्कारों का पहन गहना,
मन ही मन मुरझाई,
फबता है तुम पर,
फबता है तुम पर,
यही गहना मेरी कहने लगी मेरी परछाई |
भाव मन के उकेरे,
मौन शब्दों का मुखर बखान,
हृदय प्रवाह में प्रेम गंगा,
कविता संग खिली मुस्कान |
- अनीता सैनी