पत्थर के पेड़ हरे होंगे,
मानव ज्ञान की राह चला,
धरा का सीना छलनीकर,
लेने उस की थाह चला |
न पतझड़,न वसंत का इंतज़ार,
धरा का दामन होगा भरा,
फूलों का होगा ढेर,
दर्द में डूबी होगी धरा |
भँवरों के भिनभिनाने का भार,
न फूलों को लेना होगा,
फूलों को अपना अस्तित्त्व,
ताक पर रख देना होगा |
रंगों में लिपटे होंगे फूल,
नज़ारों में होगी रंगीनियत,
फूल होगें पत्थर के,
न होगी फूलों में मासूमियत |
फूलों से सुन्दर फूल होगें पर,
फूलों में वो ख़ुशबू न रहेगी,
पत्थर की वरमाला होगी,
पत्थर से फ़िर सेज सजेगी |
आवतों ने बुना जाल,
बुद्धि की यही कलाकारी,
विज्ञान-यान पर सवार मानव,
खोज है यह चमत्कारी |
दौड़ रहा मस्तिष्क मानव का,
हृदय पर की सवारी,
शीतलता की राहत होगी,
प्रगति की आयी बारी |
धरा को पत्थर-फूल से सजाया,
सूरज-चाँद पर जाने की तैयारी,
मानव चला प्रगति की राह,
विज्ञान की यह महिमा सारी |
- अनीता सैनी
बहुत खूब ......, सुन्दर सृजन अनीता जी 👌👌
जवाब देंहटाएंसुप्रभात सखी
हटाएंसस्नेह आभार
सादर
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय
हटाएंसादर
बेहतरीन प्रस्तुति सखी
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सखी
हटाएंसादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति, अनिता दी।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार ज्योति बहन
हटाएंसादर
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-04-2019) को "मौसम सुहाना हो गया है" (चर्चा अंक-3294) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय चर्चा में स्थान देने के लिए
हटाएंसादर
दमदार¡ आने वाले दिनों का भयावह चित्रण सखी दुखद पर चिंतन परक।
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक।
सस्नेह आभार प्रिय सखी
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वाह!
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
बहुत खूब। पत्थर के पेड़ हरे होंगे। क्या बात है। सार्थक रचना। सादर।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
जवाब देंहटाएंसादर
आभार आदरणीय
जवाब देंहटाएंसादर
प्रिय अनिता --ज्ञान और विज्ञानं के तर्क प्रस्तुत करती सशक्त रचना |सब कुछ पत्थर का होगा तो कहाँ मन भी लचीला रहेगा | वह भी तो पत्थर का होगा | सार्थक रचना के लिए शुभकामनायें |
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार रेणु दी
हटाएंसादर