मैं धर्म हूँ
शाश्वत
पदार्थ में सार्वभौमिक
मानव धर्म सार्वभौमिकता
हुआ न कभी बदलाव मुझमें
फिर भी तलाश रहा हूँ अपना अस्तित्त्व
खोज रहा हूँ पहचान अपनी
धारण किया मैंने कर्म को
प्रदर्शित किया गुणों को
मैं मानव से संबंधित नहीं
सृष्टि के कण-कण में विराजित मैं
पदार्थ में हूँ प्रयुक्त
मैं सर्वकालीन हूँ
न रुप रंग की बाधा
हर रंग फबता मुझ पर
पानी का धर्म बहना
दिया अग्नि रुप प्रकाश
सम्पर्क में आने पर जल जाना
अधरों पर धारण किया सम्राटअशोक ने
सामाजिक दायित्वों का करना था सम्मान
(व्यवसाय - वर्णा धर्म
जीवन स्तर -आश्रम धर्म
व्यक्तित्व -सेवा धर्म
राजात्व-राज धर्म ,स्त्री धर्म और मोक्ष धर्म )
अर्थ में डूबा जब जग मेरे
तब अर्थ को भूल बैठा वह मेरे
कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण
साथ मेरे सद्गुण का नाता
धर्म सम्प्रदाय में उलझा दामन मेरा
हिन्दू ,मुस्लिम, ईसाई, जैन या कहु बौद्ध धर्म नहीं,
सम्प्रदाय यह मेरे
हृदय भीतर जकड़ी विचारधाराओं ने थामा हाथ मेरा
घटनाओं का लगा ताँता
तब गूँथी धर्म उत्पति की डोर वह भारी
गूँथे मानस मन के तार
भूल गया वह आभा मेरी
खोज रहा रुप साकार
हिन्दू धर्म में -ब्रह्म,विष्णु और महेश बन निखरा रुप मेरा
दौड़ा युगों का रुप सुनहरा सतयुग,त्रेता, द्वापर और कलियुग
जैन धर्म -ऋषभनाथ की विचार धरा से
ब्रम्हा के मानस पुत्र के वंशज और राम के पूर्वज ने थामी कर्म डोर अभागी
ढला बौद्ध बुद्ध की धारा का लिए प्रवाह
गुरुनानक की सजा सुन्दर वाणी अधरों पर
मैं धर्म
दौड़ रहा युगों युगों से
कर कर्म को धारण |
- अनीता सैनी
बहुत ही शानदार प्रस्तुति विस्तार से जानकारी युक्त काव्य बहना।
जवाब देंहटाएंअनुपम सृजन ।
आदरणीय कुसुम दी आप का तहे दिल से आभार
हटाएंसादर
वाह शानदार रचना जितनी तारीफ की जाए कम है बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति सखी
जवाब देंहटाएंआदरणीय अनुराधा दी बहुत बहुत आभार आप का
हटाएंसादर
बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (12-04-2019) को "फिर से चौकीदार" (चर्चा अंक-3303) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय चर्चा में स्थान देने के लिए
हटाएंसादर
वाह....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सृजन
आभार आदरणीय
हटाएंसादर
वाह बहुत सुन्दर रचना ।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार आदरणीय
हटाएंसादर
आपकी लिखी रचना सोमवार 15 अप्रैल 2019 के लिए साझा की गयी है
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सस्नेह आभार आदरणीया यशोदा दी जी
हटाएंसादर
लाजवाब सृजन । धर्म को बड़ी सुन्दरता से व्याख्यायित किया है आपने ।
जवाब देंहटाएंप्रिय सखी मीना जी तहे दिल से आभार आप का
हटाएंसादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति धर्म की व्याख्या
जवाब देंहटाएंप्रिय सखी रितु जी सस्नेह आभार आप का
हटाएंसादर
दौड़ रहा युगों युगों से
जवाब देंहटाएंकर कर्म को धारण |
धर्म की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी ,सादर स्नेह
प्रिय कामिनी बहन आप का तहे दिल से आभार उत्साहवर्धन
हटाएंके लिए
सादर
वाह
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
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बेहतरीन। धर्म को ही धर्म की व्याख्या करनी पड़ेगी एक दिन अवतार लेकर। तब शायद इंसान को समझ आए कि जिसके नाम पर वह लड़ रहा है क्या वही धर्म है ?
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय मीना बहन
हटाएंसादर
धर्म सम्प्रदाय में उलझा दामन मेरा
जवाब देंहटाएंहिन्दू ,मुस्लिम, ईसाई, जैन या कहु बौद्ध धर्म नहीं,
सम्प्रदाय यह मेरे
हृदय भीतर जकड़ी विचार धाराओं ने थामा हाथ मेरा
घटनाओं का लगा ताँता
तब गूँथी धर्म उत्पति की डोर वह भारी
बहुत खूब प्रिय अनीता -- धर्म को बहुत ही सुंदर ढंग से परिभाषित करती आपकी ये रचना विशेष है |धर्म को अपने अपने ढंग से सभी ने परिभाषित किया है पर इसकी सम्पूर्ण व्याख्या कोई भी नहीं कर पाया है | अपने हर ओर गहन दृष्टि कर एक सुंदर लघु निबंधात्मक रचना लिखी है | पानी का धर्म बहना है -- एकदम सही सभी तत्व अपने अपने धर्म में गोचर कर रहे हैं| ये इन्सान के लिए भी बहुत प्रेरक है | सुंदर रचना के लिए सस्नेह शुभकामनायें |
तहे दिल से आभार प्रिय रेणु बहन
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कर्म ही धर्म है के सार पर बहुत सुन्दर सार्थक चिन्तनपरक रचना...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
सस्नेह आभार प्रिय सखी सुधा जी
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