स्नेह की लालिमा,
फैली यूँ धरा पर दूर तलक,
मख़मली कोमल एहसासों में,
लिपटा ज़मीं से नील-फ़लक |
तरु की साख झुकी भूतल पर,
पाने धरा का निर्मल स्पर्श,
हर्ष में डूबा खिलखिला रहा मन,
उठी लहर सागर में,प्रीत की रही वो झलक|
आशा-अभिलाषा संग कमनीय,
मृदुल प्रमोद में चमक रही हृदय की लालसा,
पिया संग गाये मधुर रागिनी, बैठ साँझ सिरहाने,
मादकता में डूबा क्षितिज निहारे धरा को अपलक |
- अनीता सैनी
वाह सुंदर चित्रण
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सखी
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स्नेह की लालिमा
जवाब देंहटाएंफैली यूँ धरा पर दूर तलक ....,
वाह...., बहुत खूबसूरत सृजन ।
सस्नेह आभार प्रिय सखी
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अनुपम औ अद्वितीय भावाभिव्यक्ति -
जवाब देंहटाएं🙏 👏 🙏
सहृदय आभार आदरणीय
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कोमल मन की अति कोमल प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर है बहना।
सस्नेह आभार सखी
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-04-2019) को "दया करो हे दुर्गा माता" (चर्चा अंक-3305) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
दुर्गाअष्टमी और श्री राम नवमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय
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स्नेह की लालिमा
जवाब देंहटाएंफैली यूँ धरा पर दूर तलक .....
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति ।
सहृदय आभार आदरणीय
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स्नेह में लिपटी बहुत सुंदर प्रस्तूति।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय सखी
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बेहद खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सखी
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वाह!!!
जवाब देंहटाएंअद्भुत ...अप्रतिम सृजन।
सस्नेह आभार सखी
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बहुत प्यारी रचना सखी ,सादर स्नेह
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सखी
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बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
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बहुत सुंदर .... मानवीकरण
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
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पिया संग गाए मधुर रागिनी, बैठ साँझ सिरहाने
जवाब देंहटाएंमादकता में डूबा क्षितिज निहारे धरा को अपलक
प्रिय अनीता आपकी कवि दृष्टि ने धरा और नभ के शाश्वत प्रेम को बहुत ही भावपूर्ण दृष्टि से देखा है | आपकी रचना में मानवीकरण अलंकार का सुंदर उदाहरण है | सस्नेह शुभकामनाएं |
सस्नेह आभार प्रिय रेणु दी
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