पीड़ा सृष्टि की आँखों में झलकी,
साँसों से किया उसका तिरस्कार,
अल्हड़ हँसी दौड़ी हृदय में,
मानव सृष्टि का जीवन आधार |
बुना ख़्वाब धरा का,
अधरों से दिया रूप साकार,
बेचैनी हृदय पर डोली ,
क्षितिज के कोर पर आया प्रभाकर,
ढली शाम हुए दीदार |
थक हारकर बैठा दिवाकर,
सृष्टि ने किया स्नेह से सत्कार,
बिन वजह जताता हूँ क्रोध,
बहुत आता है मानव पर प्यार |
अनायास ही खिलखिला उठी,
न कर दिनकर मन पर वार,
काम घनेरे दर पर मेरे,
मनु अपने कर्मों का हक़दार |
विदा हुआ शशि,
कलेजे से लग किया दीदार,
बरसाना स्नेह की चाँदनी,
मनु शतरूपा के जीवन में,
न हो अब कोई तक़रार |
- अनीता सैनी
बहुत शानदार
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय
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बहुत ही मनभावक रचना ।
जवाब देंहटाएंजी बहुत सारा स्नेह
हटाएंसादर
लाजवाब
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार आदरणीय
हटाएंसादर
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सखी
हटाएंसादर
बहुत बहुत सुंदर अभिव्यक्ति अप्रतिम अनुपम।
जवाब देंहटाएंप्रिय दी आप का तहे दिल से आभार
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जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (15-04-2019) को "भीम राव अम्बेदकर" (चर्चा अंक-3306) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
- अनीता सैनी
चांद प्रतीक है प्रेम का और जहाँ प्रेम हो शीतल चांदनी तो बरसेगी ही ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ...
सहृदय आभार आदरणीय
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बहुत खूबसूरत रचना सखी.. 👌 👌 👌
जवाब देंहटाएंप्रिय सखी सुधा आप को बहुत सा स्नेह और तहे दिल से आभार
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बहुत सुंदर सृष्टि की प्रीत...सारगर्भित गूढ़ मनभावों से सजी रचना प्रिय अनिता...👍
जवाब देंहटाएंप्रिय श्वेता जी आप का तहे दिल से आभार
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very nice dear anita.
जवाब देंहटाएंThanks dear
हटाएंबेहतरीन रचना सखी 👌
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय सखी
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