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रविवार, अप्रैल 21

झरोखा


खिलखिलाते  हुए बचपन का, 
या कहूँ मायूस  बुढ़ापे का  सहारा, 
ठुकराया  जिसे  ज़माने  ने,  
उसे   झरोखे   ने   पुकारा |

समेटे दिल में यादों का समुंदर ,  
झुकी पलकों से सँवारा, 
टेक उसके कंधों पर सर, 
उसी की नज़रों से जहां  को निहारा |

एक अरसे से समेटे ख़ामोशी, 
वहीं  इंतज़ार का  बना  बसेरा,  
कभी  झाँकतीं   थीं   ख़्वाहिशें, 
वहाँ  तन्हाइयों  का  हुआ  सवेरा|

- अनीता सैनी 

21 टिप्‍पणियां:

  1. एक अरसे से समेटे ख़ामोशी
    वहीं इंतज़ार का बना बसेरा
    कभी झाँकती थी ख़्वाहिशें
    वहाँ तन्हाइयों का हुआ सवेरा..
    मन को वेदती रचना। शुभकामनाएं स्वीकार करें ।

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  2. वाह बहुत खूबसूरती से लिखा आपने झरोखे और अहसास।

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 21/04/2019 की बुलेटिन, " जोकर, मुखौटा और लोग - ब्लॉग बुलेटिन“ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. सहृदय आभार आदरणीय ब्लॉग बुलेटिन में स्थान देने के लिए
      सादर

      हटाएं
  4. वाहह्हह... मर्मस्पर्शी सृजन बहुत बढिया👌

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सस्नेह आभार प्रिय सखी श्वेता जी
      सादर

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  5. वाह बहुत ही बेहतरीन रचना सखी 👌

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  6. समेटे दिल में यादों का समंदर
    झुकी पलकों से संवारा
    टेक उस के कंधों पर सर
    उसी की नज़रों से जहाँ को निहारा
    प्रिय अनीता -- झरोखे से जीवन की खुशियाँ ढूंढती
    विकल मन के सुखद अतीत और वर्तमान को आपने
    करुणामई दृष्टि से देखा है |झरोखे किसी भी घुटन भरे जीवन के लिए प्राणवायु का प्रमुख द्वार होते हैं | एक दुर्लभ विषय पर बहुत सार्थक लिखा आपने | शुभकामनायें और प्यार |

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  7. तहे दिल से आभार आदरणीय आप का
    सादर

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  8. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-04-2019) को "झरोखा" (चर्चा अंक-3314) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    पृथ्वी दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय चर्चा में मुझे स्थान देने के लिए
      सादर

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  9. वाह!!!
    लाजवाब सृजन....

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