क्यों मिटाया ख़ुद को जीवन पर कुंडली मार,
सुख पीड़ा का बहुत बड़ा कवि हृदय का सार |
नाज़ुक तन फूलों की डार, लिये भीतर पाषण-सा भार ,
निराधार जीवन उसका न बनी वेदना जिस अंतर मन का सार |
सिसकी वेदना सीने में बातें उससे हुईं इस बार ,
क़दम-क़दम पर साथ चली बन सुख, का सच्चा आधार |
क़दम-क़दम पर साथ चली बन सुख, का सच्चा आधार |
सीने से लगाये फिरती, करती पल-पल मनुहार
वेदना जननी प्रीत की हाथों से करती जीवन शृंगार|
- अनीता सैनी
- अनीता सैनी
बहुत शानदार
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आप का आदरणीय
हटाएंसादर
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सखी
हटाएंसादर
शानदार जी
जवाब देंहटाएंजी स्नेह आभार
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (28-04-2019) को " गणित के जादूगर - श्रीनिवास रामानुजन की ९९ वीं पुण्यतिथि " (चर्चा अंक-3319) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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अनीता सैनी
बहुत ही बेहतरीन रचना सखी 👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार प्रिय सखी
हटाएंसादर
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
जवाब देंहटाएंसीने से लगाए फिरती, करती पल - पल मनुहार
वेदना जननी प्रीत की हाथों से करती जीवन श्रृंगार..।
श्रेष्ठ भावों से सजी अनुपम रचना ।
प्रिय सखी मीना जी तहे दिल से आभार आप का उत्साहवर्धन टिप्णी के लिए
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर अनीता जी.
जवाब देंहटाएंवियोग ही प्रेम का आधार है और विरह ही काव्य का आधार है.
महर्षि वाल्मीकि से लेकर सुमित्रानंदन पन्त का भी यही मानना है.
प्रणाम आदरणीय
हटाएंसहृदय आभार आदरणीय आप का उत्साहवर्धन के लिए
सादर
वाह वाह बहुत खूबसूरत भावों से सजी गहराई तक उतरती सच्ची अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंप्रीत विरह वेदना की जाई ।
अति सुन्दर।
प्रिय कुसुम दी आप का तहे दिल से आभार इतनी सुन्दर टिप्णी टिप्णी के लिए | प्रीत विरह वेदना की जाई ....बहुत ही सुन्दर शब्द आप के
हटाएंआभार
सादर
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२९ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सस्नेह आभार प्रिय श्वेता जी
हटाएंसादर
प्रिय अनीता -- एक फ़िल्मी गीत के बोल हैं -- हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं | यही भाव तुम्हारी रचना से प्रकट होते हैं जो सन्देश दे रही है वेदना के रस में पगकर ही इंसान सही अर्थों में सच्चा प्रेम करना सीखता है | इसे वेदना से करुना - दया प्रेम आदि जन्मते हैं और इंसानियत को धन्य कर देते हैं | सस्नेह शुभकामनायें और मेरा प्यार तुम्हारे लिए |
जवाब देंहटाएंप्रिय सखी रेणु जी बहुत ही सुन्दर और सराहनीय टिप्णी आप की रचना के चार चाँद लगा दिए आप ने
हटाएंतहे दिल से आभार आप का, स्नेह यूँ ही बनाएं रखे
आभार
सादर
बहुत सुंदर भाव एवं बेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंप्रिय सखी मीना जी तहे दिल से आभार आप का
हटाएंसादर
सहृदय आभार आदरणीय
जवाब देंहटाएंसादर
सच है की जसके मन में वेदना नहीं वो मनुष्य कहलाने लायक नहीं ...
जवाब देंहटाएंमन के भाव कोमल न हों ... दुसरे के दर्द से मन द्रवित न हो तो बेमानी है जीवन ...
अच्छी रचना है ...
सहृदय आभार आदरणीय इनती सुन्दर रचना की समीक्षा के
हटाएंलिए |प्रणाम
सादर
अनुपम कृति
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय सखी
हटाएंसादर
सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय, आप का आशीर्वाद यूँ ही बना रहे
हटाएंआभार
सादर
क्यों पहनी मायूसी, ख़ामोशी में सिमटा प्यार
जवाब देंहटाएंउतरी वेदना अंतर मन में भाग्य उदय हुआ उस का हर बार
क्यों मिटाया ख़ुद को जीवन पर कुण्डी मार
सुख पीड़ा का बहुत बड़ा कवि हृदय का सार..
आपकी विशिष्ट लेखन शैली की उत्कृष्ट रचना। मौलिकता का संवर्धन करती नई सृजन हेतु शुभकामनाएं स्वीकार करें आदरणीया अनीता जी।
सहृदय आभार आदरणीय पुरुषोत्तम जी आप की उत्साहवर्धन टिप्णी के लिए | मार्गदर्शन करते रहे
हटाएंआभार