संस्कारों का पहन गहना,
बड़ी शान से चलने लगी,
समेटे होंठों की मुस्कान,
समेटे होंठों की मुस्कान,
गीत प्रीत के गाने लगी |
इंतज़ार में सिमटे दिन,
इंतज़ार में सिमटे दिन,
वही रात गुज़रने लगी,
पहरेदार वह देश का,
पहरेदार वह देश का,
यही सोच वह मुस्कुराने लगी |
गुरुर से धड़कता सीना,
झलका आँखों से पानी,
क्या कहेगा समाज ?
क्या कहेगा समाज ?
यही से शुरू हुई वह कहानी |
सुशील और शालीनता की जद्दोजेहद,
सुशील और शालीनता की जद्दोजेहद,
मन में लिए लाखों सवाल,
आदर्श रूप का दिखा आईना,
आदर्श रूप का दिखा आईना,
उभर आयी एक मिशाल |
संस्कारों का पहन गहना,
मन ही मन मुरझाई,
फबता है तुम पर,
फबता है तुम पर,
यही गहना मेरी कहने लगी मेरी परछाई |
भाव मन के उकेरे,
मौन शब्दों का मुखर बखान,
हृदय प्रवाह में प्रेम गंगा,
कविता संग खिली मुस्कान |
- अनीता सैनी
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 1 मई 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सहृदय आभार आदरणीया पप्पी जी
हटाएंसादर
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (01-05-2019) को "संस्कारों का गहना" (चर्चा अंक-3322) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय चर्चा में स्थान देने के लिए
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ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 30/04/2019 की बुलेटिन, " राष्ट्रीय बीमारी का राष्ट्रीय उपचार - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय ब्लॉग बुलेटिन में स्थान देने के लिए
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बहुत खूब प्रिय अनीता | तुम्हारी ये रचना बहुत खास है |
जवाब देंहटाएंतुमने इसमें अपनी रचनात्मकता के बिना जी रही सैनिक की पत्नी के मनोभावों को बखूबी दर्शाया है | संस्कार हमें दुनिया में पहचान तो दिलाते हैं साथ में अपनों में बहुत नाम भी दिलाते हैं , पर एक कसक भीतर व्याप्त रहती है जो किसी रचनात्मक शौक के साथ पूरी होती है --
संस्कारों का पहन गहना
मन ही मन मुरझाई
फबता नहीं तुम पर
हँसती मेरी परछाई
इसके बाद जो शौक कविता का हो तो बहुत कुछ बदल देता है जीवन में | दर्द की जगह हंसी आ जाती है और शब्द अपने आप बोलते है | सचमुच सैनिक पति की अनुपस्थिति में युमने सुघड़ता से घर और बच्चे सँभालते हुए जिस प्रतिबद्धता और समर्पण से ब्लॉग को संभाल रखा है | अंत में --कविता संग खिली मुस्कान-- यही तो इस शौक की पूर्ति से उत्पन्न आनन्द का सार है | ढेरों शुभकामनायें और प्यार | यूँ ही कविता के संग हंसती रहना और नये नये गीत रचना |🌷🌷🌷🌷🌷💐💐🌹🌷💐🌺🌻🌼🌸🥀🌹🌷---
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प्रिय सखी रेणु जी सस्नेह आभार आप का इतनी अच्छी समीक्षा के लिए
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अनुपम औ अद्वितीय भावाभिव्यक्ति सुखद औ सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंजी सादर धन्यवाद उत्कृष्ट चिंतन चित्रण निमित्त । सुप्रभातम् जय श्री कृष्ण राधे राधे जी ।🙏 👏 🙏
सहृदय आभार आदरणीय
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वाह!!प्रिय सखी ,बहुत सुंदर लिखती हैं आप!
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय सखी शुभा जी
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सैनिक की संगीनी के मन का भाव बखूबी उकेरा है आपने। शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
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बहुत पसंद आई आपकी रचना और रचना में प्रयुक्त उपमाएं भी।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
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बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय सखी सुमन जी
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सहृदय आभार आदरणीय
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बहुत ही प्यारी रचना ,अंतर्मन की दशा को दर्शाता सुंदर अभिव्यक्ति सखी ,स्नेह
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय सखी कामिनी जी
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संस्कारों का पहन गहना
जवाब देंहटाएंमन ही मन मुरझाई
फबता नहीं तुम पर
हँसती मेरी परछाई
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना सखी 👌
सस्नेह आभार सखी
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वाह ! बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
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