बुधवार, अप्रैल 3

शुष्क मरु की तपती काया

                                                                      
               शुष्क  मरु की  तपती काया,  
                  झुलसा तन तलाशे  छाया,  
                        आओ प्रिये  !
                          प्रीत  संग,  
                  भाव-सरिताएँ  उलीचें

                     सुंदर  फूल   नहीं, 
                    जंगली   घास  उगाएँ, 
                  तपती  देह कराहता मरु,  
                       मुस्कुराते छाले,  
                       आओ  प्रिये  !
           शुष्क मरु पर भाव-सरिताएँ  उलीचें |

              सावनी-मनुहार भरे  साँसों  में, 
                   विश्वास दबा मुठ्ठियों  में, 
                    प्रेम के मधुर गीत सींचे,  
                         शुष्क मरु पर, 
                     भाव-सरिताएँ  उलीचें |

                  हृदय करुणा झलके आखों  में,  
                   शीतलता का  भाव  तलाशें, 
                               आओ  प्रिये  !  
                      निशा का साथ सुहाना, 
                     अनमनी सी ठहरी तन पर, 
                      मौन  प्रेम के  लगे पहरे, 
                      मुखर मधुर  स्वप्न  सुनहरे, 
                             आओ प्रिय !
                        प्रीत पल  कर  धारण, 
                         तब नयनों को मीचें, 
                              प्रीत  संग, 
                        भाव-सरिताएँ  उलीचें |

                              - अनीता सैनी 

27 टिप्‍पणियां:

  1. प्रिय अनीता--प्रेम को आतुर हिय का मधुर मनुहार !! !! सरस ,सरल, सुंदर रचना जो बहुत मनभावन है। सस्नेह शुभकामनाएं और बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति बहना भावों का बहता संगम मरुस्थल में स्नेह सरिता वाह¡¡

    जवाब देंहटाएं
  3. वाहह्हह.. सहज मनभावनी प्रिय संग प्रेम गीत का हार...बहुत प्यारी रचना प्रिय अनीता।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सस्नेह आभार आदरणीया श्वेता जी
      सादर

      हटाएं
  4. सावनी - मनुहार भरे सांसों में
    विश्वास दबा मुट्ठीयों में
    प्रेम के मधुर गीत सींचे
    शुष्क मरु पर
    भाव सरिताएं उलीचें
    बहुत सुन्दर ,सार्थक भावाभिव्यक्ति...
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. तहे दिल से आभार आदरणीया सुधा जी
      सादर

      हटाएं
  5. बेहद खूबसूरत रचना

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय अनुराधा बहन तहे दिल से आभार आप का
      सादर

      हटाएं
  6. शुष्क मरु की तपती काया
    झुलसा तन तलाशे छाया
    आओ प्रिय
    प्रीत संग
    भाव - सरिताएं उलीचें......,
    अप्रतिम सृजन अनीता जी ।

    जवाब देंहटाएं
  7. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरूवार 4 अप्रैल 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय रविन्द्र जी
      सादर

      हटाएं

  8. शुष्क मरु की तपती काया
    झुलसा तन तलाशे छाया
    आओ प्रिय !
    प्रेम की खूबसूरत मनुहार. वाह 👏 👏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय सुधा बहन तहे दिल से आभार आप का
      सादर

      हटाएं
  9. निशा का साथ सुहाना
    अनमनी सी ठहरी तन पर
    मौन प्रेम के लगे पहरे
    मुखर मधुर स्वप्न सुनहरे
    आओ प्रिय !
    बहुत सुंदर रचना।



    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुंदर मनुहार !
    विशेष पंक्ति -
    आओ प्रिय ! भाव सरिताएँ उलीचें !

    जवाब देंहटाएं
  11. अनुपम औ अद्वितीय चिंतन चित्रण अविस्मरणीय है।
    🙏 👏 🙏

    जवाब देंहटाएं
  12. उत्तर
    1. तहे दिल से आभार आदरणीय
      सादर

      हटाएं

    2. जी नमस्ते,

      आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (6-04-2019) को " नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएं " (चर्चा अंक-3297) पर भी होगी।

      --

      चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

      जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

      ....

      अनीता सैनी

      हटाएं