कानों में चुभने लगी,
गाँधी के देश में गाँधीगीरी की,
परिपाटी पनपने लगी,
ख़ामोशी से ताकती निगाहें,
गौण होती इंसानियत,
बड़प्पन का मुखौटा,
मुखौटे में दम तोड़ता पिंजर |
ख़्वाहिशों से जूझता मन,
मन में सूक्ष्म बीज ख़्वाहिशों के,
ख़्वाहिशों से पनपती लापरवाही,
लापरवाही का न्यौता घटना और हादसों को,
हादसों का शिकार बनते,
अंजान और बेख़बर लोग,
जिन्हें अगले पल का,
आभास मात्र भी नहीं |
मन में होने वाली ग्लानि,
धुल जाती वक़्त के साथ,
तन की कल्मषता गंगा स्नान से,
कितना आसान,
तन और मन को साफ़ रखना |
वक़्त के साथ यह परिपाटी,
लगा रही दौड़,
क्यों बदलें हम ?
सामने वाला क्यों नहीं?
शालीनता में छिपा अहंकार,
ख़ामोशी में छिपा द्वेष,
द्वेष मन के साथ,
निगल जाता तन को,
अपने हों या पराये,
एक ही नज़र से ताकता |
- अनीता सैनी