कृशकाय पगडंडियों पर दौड़ते गाँवों को,
शहरों की सड़कें निगल गयीं |
अपनेपन की ख़ुशबू से खिलखिलाती,
गलियाँ राह शहर की भटक गयीं|
भूला मिट्टी की ख़ुशबू ,
शौहरत की महक दिल-ओ-दिमाग़ में छा गयीं |
मासूम दिल पर दिमाग़ ने क़हर ढा दिया,
छीन पीपल की छाँव, फ़ुटपाथ पर ज़िंदगी सो गयी |
मालिकाना हक़ का रौब , मुस्कुराती फ़सलें छोड़ ,
बन मज़दूर मज़दूरी को मुहताज़,
वही मेहनत पगार हाथों में थमा गया |
कठघरे में जिंदगी, स्वाभिमान की पगड़ी ले गयी,
दो वक़्त की रोटी , नशे का व्यापारी बना गयी |
शब्दों में सुभाशीष, हाथों में देश का भविष्य,
बदली शब्दों की लय, लाचारी सीने से लगा गयी |
हुआ घायल मन , तन ने साथ छोड़ दिया,
नशे ने जकड़ा, दीनता हाथ फैला गयी |
सोई मानवता जाग उठी, धूम्रपान से तन को छुड़ा,
इंसान को इंसानियत का पाठ पढ़ा गयी |
- अनीता सैनी
बहुत बहुत सुंदर रचना आज की आपाधापी में सभी नियामत खो रहा है इंसान और उलझता जा रहा है बस अंध दौड़ में पेट जो न करवा दे कम है और जिनके पेट भरे हैं लालच बैठी है सोच में।
जवाब देंहटाएंसामायिक चिंतन।
सस्नेह आभार प्रिय कुसुम दी जी
हटाएंसादर
बहुत ही बेहतरीन रचना सखी
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार प्रिय अनुराधा दी जी
हटाएंसादर स्नेह
बहुत बेहतरीन
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय सखी सुधा जी
हटाएंसादर स्नेह
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (02 -06-2019) को "वाकयात कुछ ऐसे " (चर्चा अंक- 3354) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
....
अनीता सैनी
आभार मंच
हटाएंकठघरे में जिंदगी, स्वाभिमान की पगड़ी ले गई
जवाब देंहटाएंदो वक़्त की रोटी , नशे का व्यापारी बना गई
बेहद भावपूर्ण रचना सखी ,सही कहा आपने ये दिमाग का ही कहर हैं।
तहे दिल से आभार प्रिय सखी कामिनी जी
हटाएंसादर स्नेह
अनीता जी, कोई ग्रामीण जो सपना अपनी आँखों में संजोकर अपना गाँव छोड़ता है वह शहर में ठोकरें खाकर चूर-चूर हो जाता है. अभाव और निराशा के क्षण भुलाने के लिए वह नशे का आदी हो जाता है और फिर ख़ुद को मिटाने की राह पर चल पड़ता है. गाँव-गाँव की यही कहानी है.
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार सर, आप ने इतनी सुन्दर समीक्षा की
हटाएंआभार
सादर
सहृदय आभार आदरणीय
जवाब देंहटाएंसादर
सुन्दर प्रस्तुति ,अपने और अपने परिवार के लिए दो वक़्त की रोटी का इंतजाम करने के लिए मनुष्य मजबूरी में ना जाने क्या -क्या नहीं कर जाता....भावपूर्ण स्थिति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया प्रिय रितु दी जी
हटाएंसादर स्नेह
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
हटाएंसादर
भारत का बेटा किसान अनेक सुविधाओं के अभाव में यह त्रासदी झेलने के लिए विवश है ।इस रचना के मार्मिकता में कड़वा सच छिपा है।सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंसादर ।
तहे दिल से आभार प्रिय सखी
हटाएंसादर स्नेह
बन मज़दूर मज़दूरी को मुहताज़
जवाब देंहटाएंकड़वा सच छिपा है रचना में अनीता जी
तहे दिल से आभार आदरणीय भास्कर भाई, आप का सानिध्य यूँ ही बना रहे
हटाएंसादर स्नेह