सृष्टि ने किया भावों का शृंगार |
कलपा सृष्टि ने सूने मन को,
उपजी उर में करूणा अपार,
ममता मन में मचल उठी,
दिया मानव को रूप साकार,
करुण -काव्य बहा अंतरमन में,
दिया मानव को रूप साकार,
करुण -काव्य बहा अंतरमन में,
सृजा सृष्टि ने मानवावतार |
शब्द-शब्द का सार पढ़ा,
गढ़ा मन का उद्गार,
पुलिकत मन के तार हुए,
मिटा हृदय का भार |
उर से उर को जोड़ती,
मिटा हृदय का भार |
उर से उर को जोड़ती,
उर के कोमल तार |
मानस चोला प्रीत का,
स्नेह ,करूणा का गढ़ा मोहक दाँव,
पहन चोला निखरा मानव,
लगे देव-दूत पूनम की छाँव |
गर्वित हृदय सृष्टि का,
लगे देव-दूत पूनम की छाँव |
गर्वित हृदय सृष्टि का,
मानव मन में सुन्दर संस्कार |
मानवता की निर्मल महक,
महका सृष्टि का घर-द्वार,
एक सूत्र में बँधा मानव,
सजा उर पर मुक्ता-हार |
सजा उर पर मुक्ता-हार |
पथ-पथ पर प्रीत खिली,
जीवन-मर्म महका,
उर के उस पार |
- अनीता सैनी
- अनीता सैनी
बहुत सुंदर शब्दों का सरगम।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से आभार आदरणीय विश्वमोहन जी आप का
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आपकी रचना की जितनी तारीफ़ की जाय कम है
जवाब देंहटाएंप्रिय उर्मिला दी जी सस्नेह आभार आप का उत्साहवर्धन समीक्षा हेतु
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बेहतरीन रचना सखी 👌
जवाब देंहटाएंप्रिय अनुराधा दी जी, तहे दिल से आभार आप का
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वाहः बहुत ही लाजवाब
जवाब देंहटाएंआदरणीय लोकेश जी सहृदय आभार आप का
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सुन्दर और भावप्रणव गीत।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय
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आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार मई 20, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंप्रिय यशोदा दी जी, सस्नेह आभार आप का पाँच लिंकों में मेरी रचना को स्थान देने के लिए
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वाह बहुत सुन्दर काव्य धारा सुंदर शब्दों का गहन ताना बाना ।
जवाब देंहटाएंप्रिय कुसुम दी जी सस्नेह आभार आप का उत्साहवर्धन समीक्षा हेतु
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जीवन के कठिन सवालों पर विमर्श को आमंत्रित करती सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंआदरणीय रविन्द्र जी तहे दिल से आभार आप का रचना का गहनता से अध्ययन करने और सुन्दर समीक्षा हेतु
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मानवता की निर्मल महक
जवाब देंहटाएंमहका सृष्टि का घर - द्वार
एक सूत्र में बँधा मानव
सजा उर पर मुक्ता- हार
सुंदर सार्थक सृजन प्रिय अनीता !!!!!!!! कोमल शब्दावली मनमोहक है | सस्नेह --
प्रिय रेणु दी जी आप के मन मोहक शब्द जिनका मैं समीक्षा अपने शब्दों में नहीं कर सकती, सस्नेह आभार आप का
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सुन्दर भावों से सजी रचना
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय रितु दी जी
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मानवता की निर्मल महक
जवाब देंहटाएंमहका सृष्टि का घर - द्वार
एक सूत्र में बँधा मानव
सजा उर पर मुक्ता- हार
बहुत सुंदर।
प्रिय ज्योति बहन तहे दिल से आभार आप का
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मानस चोला प्रीत का
जवाब देंहटाएंस्नेह ,करूणा का गढ़ा मोहक दाँव
पहन चोला निखरा मनु
लगे देव - दूत पूनम की छाँव...बहुत...बहुत...बहुत ही सुदर कविता अनीजा जी
सस्नेह आभार आदरणीय
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बहुत सुन्दर सृजन अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय मीना जी
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जी बहुत बहुत शुक्रिया आप का निश्छल जी
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बहुत ही सुन्दर कविता |
जवाब देंहटाएंजी बहुत बहुत शुक्रिया
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शब्द - शब्द का सार पढ़ा
जवाब देंहटाएंगढ़ा मन का उद्गार
पुलिकत मन के तार हुए
मिटा हृदय का भार ...
बेहतरीन लेखन । मन की अभिव्यक्ति सहज और सुग्राह्य तरीके से कैनवास पर उतर आई है। बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ
सहृदय आभार आदरणीय पुरुषोत्तम जी
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बेहतरीन सृजन.... सखी
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय सखी कामिनी जी
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वाह !प्रिय अनिता तुम्हारा ब्लॉग मानो हरीतिमा से आच्छादित उपवन में कोई सफ़ेद चादर बिछाकर आराम कर रहा हो | अत्यंत नयनाभिराम , मनभावन थीम लगायी है तुमने | हार्दिक स्नेह के साथ मेरी शुभकामनायें |
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार दी
हटाएंआप ही के कहे अनुसार आप ही के लिए
सादर
मानस चोला प्रीत का
जवाब देंहटाएंस्नेह ,करूणा का गढ़ा मोहक दाँव
पहन चोला निखरा मनु
लगे देव - दूत पूनम की छाँव
वाह!!!!
बहुत ही सुन्दर, सार्थक और लाजवाब सृजन
सस्नेह आभार प्रिय सुधा दी जी
हटाएंतहे दिल से आभार आप का सुन्दर समीक्षा के लिए
सादर